भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

13. पाती भारत माँ के नाम

 

माँ तू ही है जाग जननी सबकी
तू ही भाग्य विधाता
तेरी कोख से जन्मा है वो
दूध धरा का पिया है उसने 
लाज तेरी रखने को 
खेल गया वो जान पे अपनी
कल गगन को छूता था जो
वो तिरंगा शहीद का तन सजा रहा
लाज है तूने रख ली उसकी
पनाह देकर आँचल में माँ
तेरी कोख से पैदा होकर
समा गया आँचल में तेरे 
गौरव है उस पुत्र पर जो
भारत माँ का बेटा है। 

<< पीछे : 12. रैन कहाँ जो सोवत है आगे : 14. सुख दुख की लोरी >>

लेखक की कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
ग़ज़ल
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो