भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

36. मेरी यादों का सागर

 

मेरी यादों का सागर
हिचकोले खाता, लहराता
मेरे मन के अंतरघट को छू जाता, 
मेरी इच्छा, अनिच्छा के आँचल का
कभी तो भिगो जाता है
कभी ख़ुश्क छोड़ जाता है
जाने क्यों मेरा मन
प्यासा ही प्यासा
किसी अनजान, अदृश्य
तट पर बसना चाहता है
जहाँ मेरे मन की सइरा
निर्जल होने से बच जाए
रेत रेत ना रहे
पानी पानी हो जाए। 

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