भीतर से मैं कितनी खाली (रचनाकार - देवी नागरानी)
17. यादों में वो बातें
मेरे भीतर, गहरे कहीं
यादों का एक पुलिंदा
यक़ीनन मैंने ही बाँध छोड़ा होगा
कब याद नहीं, शायद सोचा होगा
जब फ़ुर्सत से होंगे आमने सामने
तो गाँठें खुलेंगी, फिर बातें होगी
वो ये कहेगी, मैं वो कहूँगी
रत्ना जब हँसेगी तो मैं सुनूँगी
हँसी की वह झन्कार सलोनी
राजम वो कहेगी, मैं ये कहूँगी
उषा जो कहेगी मैं चुप रहूँगी
खन्ना जी जब बात करेंगे
शैलेन्द्र जी नैया खवेंगे
पर . . . पर . . .
नहीं लौटे वो दिन जो बीत गए कल
मन की बातें धरी रही थी मन में
आज मुड़कर नहीं देखा समय ने
और हमने भी
जिस काल में हम आ गए हैं
वो अपनी मनमानी करने पर तुला है
ये करो, वो ना करो
बाहर मत जाआप, भीतर बैठा
सेब मिलन के दर बिन ताले के बंद
दिल के झरोखे हैं कुछ खुले हुए
अब जो कहना है
ख़ुद से कह लेती हूँ
जो सुनना है
वो यादों में दोहरा लेती हूँ
पर गाँठें फिर भी बँधी हुई हैं
खुलेंगी तो बात दूर तक जाएगी
फिर भी इंतज़ार है उस मिलन का
सफ़र लम्बा है, मंज़िल दूर बहुत दूर
पर मिलेंगे अवश्य, यह तय है
शायद मंज़िल सब की एक है
तब पूछूँगी सबसे अपने मन की बात
और सुन लूँगी उनकी बात,
कह दूँगी अपनी भी हर बात
अब नहीं है मौक़ा, नहीं है हालात
बस यादों को आँसुओं में घोल पी जाती हूँ
अपने भीतर जमी बर्फ़ से ठंडे जज़्बे
ठहरी हुआ मुस्कान में दबा लेती हूँ
सोचों में बस कर लेती हूँ
ख़ुद से ख़ुद की बात।
विषय सूची
- प्रस्तावना – राजेश रघुवंशी
- भूमिका
- बहुआयामी व्यक्तित्व की व्यासंगी साहित्यिकारा देवी नागरानी
- कुछ तो कहूँ . . .
- मेरी बात
- 1. सच मानिए वही कविता है
- 2. तुम स्वामी मैं दासी
- 3. सुप्रभात
- 4. प्रलय काल है पुकार रहा
- 5. भीतर से मैं कितनी ख़ाली
- 6. एक दिन की दिनचर्या
- 7. उम्मीद नहीं छोड़ी है
- 8. मैं मौत के घाट उतारी गई हूँ
- 9. क्या करें?
- 10. समय का संकट
- 11. उल्लास के पल
- 12. रैन कहाँ जो सोवत है
- 13. पाती भारत माँ के नाम
- 14. सुख दुख की लोरी
- 15. नियति
- 16. वे घर नहीं घराने हैं
- 17. यादों में वो बातें
- 18. मन की गाँठें
- 19. रेंग रहे हैं
- 20. मुबारक साल 2021
लेखक की कृतियाँ
- साहित्यिक आलेख
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- अनूदित कहानी
- पुस्तक समीक्षा
- बात-चीत
- ग़ज़ल
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- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
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