रोटी के रंग
पवन कुमार ‘मारुत’
(मनहरण कवित्त छन्द)
औरत अकेली अकुलाती अहर्निश आह!,
कन्त क्यों किया किनारा कैसे धैर्य धरूँगी?
छोटे-छोटे बाल बिलखते बहुत बेचारे,
पूछेंगे पिता प्यारे कहाँ क्या कहा करूँगी?
दरिद्रता दुबाती हूँ सबसे साँझ-सवेरे,
बच्चे बिलखेंगे भूखे कैसे धैर्य धरूँगी?
‘मारुत’ मन महिला विचार विचारे वह,
रोटी कमाने कठिनतम काम करूँगी॥
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