भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

14. सुख दुख की लोरी

 

तन मन धन से इस प्रलय काल में
आज वसीयत के अनजाने रूप में
सामने जो आ रहे हैं
सब कुछ समर्पित करने वाले मसीहा हैं
जो अपने हिस्से से क्या कुछ योगदान नहीं देते
उन्हें किस नाम से पुकारें जो
प्रत्यक्ष प्रमाण बनकर
अपने प्राणों को डाल कर संकट में
औरों को बचा रहे हैं
तन मन धन से दीन को
सब कुछ घर पहुँचा रहे हैं
‘जीना उसका जीना है
जो औरों को जीवन देता है’
के महायज्ञ में अपने प्राणों की आहुति देकर
कुछ के जीवन बचा रहे हैं
नमन है उन सुपुत्र सिपाहियों को
फिर फिर शत शत नमन। 

<< पीछे : 13. पाती भारत माँ के नाम आगे : 15. नियति >>

लेखक की कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
ग़ज़ल
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो