भीतर से मैं कितनी खाली (रचनाकार - देवी नागरानी)
14. सुख दुख की लोरी
तन मन धन से इस प्रलय काल में
आज वसीयत के अनजाने रूप में
सामने जो आ रहे हैं
सब कुछ समर्पित करने वाले मसीहा हैं
जो अपने हिस्से से क्या कुछ योगदान नहीं देते
उन्हें किस नाम से पुकारें जो
प्रत्यक्ष प्रमाण बनकर
अपने प्राणों को डाल कर संकट में
औरों को बचा रहे हैं
तन मन धन से दीन को
सब कुछ घर पहुँचा रहे हैं
‘जीना उसका जीना है
जो औरों को जीवन देता है’
के महायज्ञ में अपने प्राणों की आहुति देकर
कुछ के जीवन बचा रहे हैं
नमन है उन सुपुत्र सिपाहियों को
फिर फिर शत शत नमन।
विषय सूची
- प्रस्तावना – राजेश रघुवंशी
- भूमिका
- बहुआयामी व्यक्तित्व की व्यासंगी साहित्यिकारा देवी नागरानी
- कुछ तो कहूँ . . .
- मेरी बात
- 1. सच मानिए वही कविता है
- 2. तुम स्वामी मैं दासी
- 3. सुप्रभात
- 4. प्रलय काल है पुकार रहा
- 5. भीतर से मैं कितनी ख़ाली
- 6. एक दिन की दिनचर्या
- 7. उम्मीद नहीं छोड़ी है
- 8. मैं मौत के घाट उतारी गई हूँ
- 9. क्या करें?
- 10. समय का संकट
- 11. उल्लास के पल
- 12. रैन कहाँ जो सोवत है
- 13. पाती भारत माँ के नाम
- 14. सुख दुख की लोरी
- 15. नियति
- 16. वे घर नहीं घराने हैं
- 17. यादों में वो बातें
- 18. मन की गाँठें
- 19. रेंग रहे हैं
- 20. मुबारक साल 2021
लेखक की कृतियाँ
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