भुइयाँ भवानी
अमरेश सिंह भदौरिया
न ऊँचा मंदिर, न सोने का मुकुट,
भुइयाँ भवानी तो वहीं रहती हैं
जहाँ हल की नोक मिट्टी चीरती है,
जहाँ बीजों में साँस भरती है उम्मीद।
वे धरती हैं—
झेलती हैं आकाश की क्रोधी बिजली,
सूखा, ओला, बेमौसम बरसात,
फिर भी हर बार
झोली फैलाकर कहती हैं—
“आओ बेटा, बो दो फिर से।”
जब किसान थक कर बैठता है
और घर की स्त्री चुपचाप
अधपका भात परोसती है—
वहीं बैठी होती हैं भुइयाँ भवानी,
बिना पूजा, बिना नाम-जप।
वे सिर्फ़ खेतों की देवी नहीं,
बल्कि स्त्री-सहिष्णुता की सजीव मूर्ति हैं।
जिनके आँचल में
हवा ठहरती है,
और जिनकी गोदी से
अन्न के साथ संस्कार भी जन्म लेते हैं।
जब कोई बच्चा मिट्टी में खेलता है,
या कोई बुज़ुर्ग उसकी माटी को माथे से लगाता है,
तब उस स्पर्श में
भुइयाँ भवानी की मुस्कान होती है।
वे न रूठती हैं, न माँगती हैं,
बस रहती हैं—
मौन, मिट्टी और माँ बनकर।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अधनंगे चरवाहे
- अधूरा सच
- अनाविर्भूत
- अमरबेल
- अमलतास
- अवसरवादी
- अहिल्या का प्रतिवाद
- अख़बार वाला
- आँखें मेरी आज सजल हैं
- आँगन
- आँगन की तुलसी
- आज की यशोधरा
- आरक्षण की बैसाखी
- आस्तीन के साँप
- आख़िर क्यों
- इक्कीसवीं सदी
- उपग्रह
- उपग्रह
- एकाकी परिवार
- कचनार
- कछुआ धर्म
- कमरबंद
- कुरुक्षेत्र
- कैक्टस
- कोहरा
- क्यों
- खलिहान
- गाँव - पहले वाली बात
- गिरगिट
- चित्र बोलते हैं
- चुप रहो
- चुभते हुए प्रश्न
- चूड़ियाँ
- चैत दुपहरी
- चौथापन
- जब नियति परीक्षा लेती है
- ज्वालामुखी
- ढलती शाम
- तितलियाँ
- दहलीज़
- दिया (अमरेश सिंह भदौरिया)
- दीपक
- दृष्टिकोण जीवन का अंतिम पाठ
- देह का भूगोल
- देहरी
- दो जून की रोटी
- धरती की पीठ पर
- धोबी घाट
- नदी सदा बहती रही
- नयी पीढ़ी
- नेपथ्य में
- पगडंडी पर कबीर
- परिधि और त्रिभुज
- पहली क्रांति
- पहाड़ बुलाते हैं
- पाखंड
- पीड़ा को नित सन्दर्भ नए मिलते हैं
- पुत्र प्रेम
- पुष्प वाटिका
- पूर्वजों की थाती
- प्रभाती
- प्रेम की चुप्पी
- फुहार
- बंजर ज़मीन
- बंजारा
- बबूल
- बवंडर
- बिखरे मोती
- बुनियाद
- भगीरथ संकल्प
- भाग्य रेखा
- भावनाओं का बंजरपन
- भुइयाँ भवानी
- मन मरुस्थल
- मनीप्लांट
- महावर
- माँ
- मुक्तिपथ
- मुखौटे
- मैं भला नहीं
- योग्यता का वनवास
- रहट
- रातरानी
- लेबर चौराहा
- शक्ति का जागरण
- शस्य-श्यामला भारत-भूमि
- शान्तिदूत
- सँकरी गली
- संयम और साहस का पर्व
- सती अनसूया
- सरिता
- सावन में सूनी साँझ
- हरसिंगार
- हल चलाता बुद्ध
- ज़ख़्म जब राग बनते हैं
- सांस्कृतिक आलेख
-
- कृतज्ञता का पर्व पितृपक्ष
- कृष्ण का लोकरंजक रूप
- चैत्र नवरात्रि: आत्मशक्ति की साधना और अस्तित्व का नवजागरण
- जगन्नाथ रथ यात्रा: आस्था, एकता और अध्यात्म का महापर्व
- न्याय और अन्याय के बीच
- बलराम जयंती परंपरा के हल और आस्था के बीज
- बुद्ध पूर्णिमा: शून्य और करुणा का संगम
- योगेश्वर श्रीकृष्ण अवतरणाष्टमी
- रामनवमी: मर्यादा, धर्म और आत्मबोध का पर्व
- लोक आस्था का पर्व: वट सावित्री पूजन
- विश्व योग दिवस: शरीर, मन और आत्मा का उत्सव
- श्राद्ध . . . कृतज्ञता और आशीर्वाद का सेतु
- साहित्यिक आलेख
- कहानी
- सामाजिक आलेख
- लघुकथा
- चिन्तन
- सांस्कृतिक कथा
- ऐतिहासिक
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- ललित निबन्ध
- शोध निबन्ध
- ललित कला
- पुस्तक समीक्षा
- कविता-मुक्तक
- हास्य-व्यंग्य कविता
- गीत-नवगीत
- विडियो
-
- ऑडियो
-