डॉ. उषा रानी बंसल
जन्म : 1945, गाजियाबाद
शिक्षा : एम.ए.; पीएच. डी.
व्यवसायिक वृत : 1965-68 में एम .ए. करने के बाद 3 वर्ष तक के आरजी पोस्टग्रेजएट कालिज, मेरठ में लेक्चरर, शादी के बाद स्थायी नौकरी छोड़ बनारस आ गई, बीएचयू से 1972 में पीएचडी की उपाधि मिली, 1974 में डॉ. बी.बी. बंसल आई.आई.टी देहली पीएचडी करने चले गये, बीएचयू की अस्थायी लेक्चररशिप छोड़ कर देहली चली गई, वहाँ जेएनयू से पर्शियन में कोर्स किया तथा जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में 2 वर्ष पढ़ाया, 1977 में डॉ. बंसल वापस बीएचयू आ गये, एक कन्या के बाद 1977 में बेटे की माँ बनने के 1 साल बाद बीएचयू में अस्थायी लेक्चररशिप मिल गई।
1984 में जाकर स्थायी लेक्चररशिप मिली। तब से विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए 2010 में प्रोफ़ेसर के रूप में अवकाश प्राप्त किया।
परिवार के दायित्व व अध्यापन के साथ जो समय मिला उसमें 5 छात्र छात्राओं को शोध कार्य कराया। मैंने एक शोधेतर कार्य भी किया।
प्रकाशन : 6 पुस्तकें प्रकाशित हुईं, 25 लेख प्रकाशित हैं।
स्वतन्त्र पत्रकार के रूप में 100 से अधिक व्यंग्य, लेख कहानियाँ, कवितायें, वाराणसी, कनेडा, अमरिका के हिंदी समाचारपत्रों, मैगज़ीनों में प्रकाशित हैं।
अभिरुचि : प्रकृति का चित्रण, रेखाकंन, बागवानी सदैव मेरा प्रकृति से संवाद बनाये रखता है।
सम्मान :
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रोटरी क्लब द्वारा व्यवसायिक सेवा सम्मान (1999)
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अमेरिकन बॉयोग्राफ़िकल सोसायटी द्वारा वूमन ऑफ़ द इयर (1999)
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30 अप्रैल 2014 को महिला मण्डल के 80 वें वाषिर्कोत्सव में सम्मान प्रदान किया
यात्राएँ : यूएसए, कैनेडा, डेनमार्क, स्वीडन, जापान, हांगकांग, सिंगापोर आदि देशों का भ्रमण किया है।
सदस्य :
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वाराणसी व भारत की कई सम्मानित संस्थाओं की सदस्या हैं।
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2010 से IIT BHU के छात्रों द्वारा लहरतारा की मलिन बस्ती में शिक्षा प्रोन्नति व स्वच्छता के कार्यक्रम "काशी उत्कर्ष" नामक संस्था की संरक्षिका व परामर्शदाता (Mentor) हैं।
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हिन्दी राइटर्स गिल्ड की सदस्या
लेखक की कृतियाँ
- कविता
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- आई बासंती बयार सखी
- आज के शहर और कल के गाँव
- आशा का सूरज
- इनके बाद
- उम्मीद का सूरज
- उलझनें ही उलझनें
- उसकी हँसी
- ऊँचा उठना
- कृष्ण जन्मोत्सव
- चित्र बनाना मेरा शौक़ है
- जाने समय कब बदलेगा
- प्रिय के प्रति
- बिम्ब
- बे मौसम बरसात
- भारत के लोगों को क्या चाहिये
- मैं और मेरी चाय
- मैसेज और हिन्दी का महल
- राम ही राम
- लहरें
- लुका छिपी पक्षियों के साथ
- वह
- वक़्त
- संतान / बच्चे
- समय का क्या कहिये
- स्वागत
- हादसे के बाद
- होने न होने का अंतर?
- होरी है……
- ज़िंदगी के पड़ाव ऐसे भी
- सामाजिक आलेख
- ऐतिहासिक
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- 1857 की क्रान्ति के अमर शहीद मंगल पाण्डेय
- 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान भारत में उद्योग
- औपनिवेशिक भारत में पत्रकारिता और राजनीति
- पतित प्रभाकर बनाम भंगी कौन?
- भारत पर मुस्लिम आक्रमणों का एक दूसरा पक्ष
- शतरंज के खिलाड़ी के बहाने इतिहास के झरोखे से . . .
- सत्रहवीं सदी में भारत की सामाजिक दशा: यूरोपीय यात्रियों की दृष्टि में
- सोलहवीं सदी: इंग्लैंड में नारी
- स्वतंत्रता आन्दोलन में महिला प्रतिरोध की प्रतिमान: रानी लक्ष्मीबाई
- सांस्कृतिक आलेख
- सांस्कृतिक कथा
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- इक्कसवीं सदी में कछुए और ख़रगोश की दौड़
- कलिकाल में सावित्री व सत्यवान
- क्या तुम मेरी माँ हो?
- जब मज़ाक़ बन गया अपराध
- तलवार नहीं ढाल चाहिए
- नये ज़माने में लोमड़ी और कौवा
- भेड़िया आया २१वीं सदी में
- मुल्ला नसीरुद्दीन और बेचारा पर्यटक
- राजा प्रताप भानु की रावण बनने की कथा
- रोटी क्या है?: एक क़िस्सा मुल्ला नसीरुद्दीन का
- हास्य-व्यंग्य कविता
- स्मृति लेख
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- कहानी
- यात्रा-संस्मरण
- शोध निबन्ध
- रेखाचित्र
- बाल साहित्य कहानी
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- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- बच्चों के मुख से
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