कानों में जूँ क्यों नहीं रेंगती

01-07-2025

कानों में जूँ क्यों नहीं रेंगती

प्रदीप श्रीवास्तव (अंक: 280, जुलाई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

हाईकोर्ट खचाखच भरा हुआ था। सभी प्रतीक्षा कर रहे थे कि माननीय न्यायमूर्ति महोदय पधारें, अपने आसन ऊँची सी कुर्सी पर विराजें, जिससे कोर्ट असेम्बल हो सके, कार्यवाई शुरू हो सके, बरसों से लटके उनके मामलों पर कोई निर्णय आए, जिसकी प्रतीक्षा करते-करते उनकी आँखें पथराई जा रही हैं, चलते-चलते अब तो पैरों में छाले भी नहीं पड़ते, जूते, चप्पलें आए दिन दम तोड़-तोड़ कर जेबें सूनी करते रहते हैं, सूनी जेबें एक कप चाय पीने से भी रोक देती हैं, ख़ुशी कैसी होती अब तो यह भी याद नहीं है। 

वह भी ऐसी ही बातों में खोई ‘एक्स हस्बैंड’ के बग़ल में बैठी थी। उससे एक शब्द बोलना क्या उसे देखना भी नहीं चाहती थी, लेकिन वह बात करने का निरंतर प्रयास करता ही रहा तो वह एकदम से नाराज़ हो उठी। जलती निगाहों से उसे घूरती हुई बोली, “जब एक आदर्श क्या औसत दर्जे के भी पति-पत्नी बनकर साथ नहीं रह सके तो एक अच्छे दोस्त का रिश्ता कैसे बन सकता है। तुम्हारी ऐसी ही छल कपट में डूबी, खोखली बातों, कुटिल व्यवहार और हर औरत को इंसान नहीं सिर्फ़ औरत समझना, उसके बदन को अपनी हवस मिटाने की मशीन समझने की आदत ने ही हमारे परिवार, हमारे जीवन को बर्बाद किया। 

“फ़ैमिली कोर्ट में हारने के बाद पहले तुमने दोस्ती का राग छेड़ा, फिर यहाँ हाई कोर्ट में खींच लाए और सोचते हो मैं तुम्हारी बातों पर विश्वास कर लूँगी। अरे तुम गंगा में खड़े होकर नहीं उसकी तली में बैठ कर, सौगंध खाकर अपनी बातें कहो तो भी कहने को भी विश्वास नहीं करूँगी। 

“जितना ज़्यादा तुम धूर्तता करते जाओगे, तुम्हें मैं उतना ही ज़्यादा पनिश करवाऊँगी। मुझे यहाँ खींच लाने की पनिशमेंट तुम्हें यहाँ अभी कुछ देर ही में मिलने वाली है, जब हमारे डायवोर्स पर जज अपनी अंतिम मोहर लगा देंगे। तब तुम्हारे चेहरे की हालत क्या होगी यह देखने के लिए भी यहाँ कोर्ट में बैठी हूँ। 

“अच्छी तरह जानती हूँ कि फ़ैमिली कोर्ट की तरह यहाँ भी जीत मेरी ही होगी क्योंकि मैं सही हूँ। कान खोलकर सुन लो, जैसे फ़ैमिली कोर्ट में वहाँ के जज ने तुम्हें हर बार लताड़ा था, उससे भी बदतर हालत तुम्हारी यहाँ भी होगी। 

“इन सात वर्षों में मैंने डायवोर्स क़ानून की एक-एक धारा को सिर्फ़ घोंट-घोंट कर पिया ही नहीं है, उसके एक एक शब्द के अर्थ, अर्थ में छिपे निहितार्थ को भी जाना समझा है। डायवोर्स के तमाम केसेज पढ़े हैं, उसी आधार पर विश्वास नहीं अन्धविश्वास के साथ कहती हूँ कि फ़ैमिली कोर्ट से भी ज़्यादा बुरी गत तुम्हारी यहाँ होने वाली है। 

“तुमने जिस तरह मेरा, मेरे बच्चों का जीवन बर्बाद किया उसके बाद तुम यह कैसे सोच लेते हो कि मैं तुमसे किसी तरह का रिश्ता रखूँगी। मैं तो तुम्हारी छाया के पास भी बैठना नहीं चाहती, मगर तुम ज़बरदस्ती बार-बार आकर मेरे पास बैठ जाते हो। 

“यह जो तुम अपनी शराबियों सी लाल-लाल आँखों में आँसू दिखा के यह समझते हो कि मैं तुम्हारे इन आँसुओं को देखकर पिघल जाऊँगी तो यह तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी भूल है। तुम्हारे इन घड़ियाली आँसुओं की क़ीमत नाली के एक बूँद पानी के बराबर भी नहीं समझती। 

“ . . . अरे आँसू तो वह हैं जो मेरी आँखों में सात वर्षों से आ-आ कर सूख गए, अब बचे ही नहीं। पैरेंट टीचर मीटिंग या कहीं भी जब मेरे बच्चों से फ़ादर के बारे में पूछा जाता है, लाख जवाब बताने के बाद भी जब वह बोल नहीं पाते, वो सिर झुका लेते हैं, तब उनकी आँखों में जो आँसू होते हैं, वो आँसू नहीं मेरे बच्चों, मेरा ख़ून होता है। उस एक बूँद ख़ून की क़ीमत तुम अपना सारा ख़ून देकर भी नहीं चुका पाओगे 

“तुम्हारे अत्याचारों, तुम्हारी गंदी सोच, तुम्हारी घिनौनी निगाहों ने मेरे तनमन में तुम्हारे लिए ठूँस-ठूँस कर इतनी घृणा भर दी है कि मैं तुम्हारी छाया भी नहीं देखना चाहती हूँ। मुझे ऐसा बोलना तो नहीं चाहिए, आख़िर एक्स हस्बेंड से पहले एक इंसान हो, मेरे बच्चों के बाप हो, उनकी रगों में तुम्हारा भी ख़ून दौड़ रहा है, लेकिन कुकर्म तुम्हारे इतने ज़्यादा हैं कि विवश होकर कह रही हूँ कि तुम्हारी छाया से भी मुझे घिन आती है। 

“ . . . जब रातें जगते हुए आँखों में कटती हैं, निगाहें जब सोते हुए अपने मासूम बच्चों पर जाती हैं, तो कई बार यह सोच कर सहम उठती हूँ कि उनकी रगों में रक्त, जींस तो तुम्हारे भी हैं, आगे चलकर कहीं तुम्हारी कुकर्मीं सोच, आदतें उनमें भी प्रभावी न हो उठें, तब तो मेरे लिए आत्महत्या करने के सिवा कोई और रास्ता ही नहीं बचेगा। 

“बरसों से बार-बार तुमसे मैं यह सब कहती आ रही हूँ, मगर तुम, मुझे यह कहने में न कोई संकोच है, न डर कि बेशर्मों की तरह पीछे पड़े रहते हो। रिश्ता जोड़ने, कम से कम दोस्त ही बन जाने का अपना गंदा कुटिल राग अलापते रहते हो। विश्वास करो यहाँ अगर इतने लोग खड़े नहीं होते तो अब तक मैं तुम्हें धक्के देकर भगा चुकी होती। 

“तुम्हारे इन आँसुओं को देखकर मेरे मन में तुम्हारे लिए कोई दया, ममता नहीं उमड़ती, एक मानवता के नाते और फिर कहती हूँ कि मेरे दोनों बच्चों के बाप हो इसलिए तुम्हें इतना बरदाश्त कर ले रही हूँ। वर्ना तुम्हारे कुकर्म ऐसे और इतने हैं कि तुम्हें तो मैं देखते ही गोली मार दूँ। 

“सच कह रही हूँ तुम्हें देखते ही नहीं बल्कि याद आते ही बार-बार मन में यही आता है कि तुम जहाँ भी हो वहीं पहुँच कर मैं तुम्हें गोली मार दूँ, मगर नहीं मार पाती। हर बार सोच सोच कर रुक जाती हूँ। इसलिए नहीं कि तुमने कोई अच्छा काम किया है, इसलिए तुम पर दया आ जाती है। यह हाथ तो उठ-उठ कर केवल अपने बच्चों के लिए रुक जाते हैं, क्योंकि तुम्हें मार दूँगी, तो तुम्हें तो अपने कुकर्मों से मुक्ति मिल जाएगी, मगर साथ ही मुझे फाँसी हो जाएगी और मेरे बच्चे अनाथ हो जाएँगे, सड़क पर आ जाएँगे, उनका जीवन बर्बाद हो जाएगा। 

“मैं उन्हें एक अच्छा जीवन देने के लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ। अपना जीवन भी देने को। बस इन्हीं सबके चलते तुम बार-बार बच जाते हो। तुम अपनी आख़िरी साँस तक हमेशा मेरे बच्चों के अहसानमंद रहो क्योंकि उनके कारण ही तुम बार-बार ज़िन्दा बच जाते हो। सोचो कितनी मुश्किल से मैं तुम्हें बरदाश्त कर रही हूँ। 

“यह भी अच्छी तरह सुन लो कि यहाँ भी हारने के बाद तुम किसी बेहया बे-ग़ैरत की तरह मामले को सुप्रीम कोर्ट भी ले गए तो भी मैं तुम्हें छोड़ने वाली नहीं हूँ। मैं डायवोर्स लेकर ही रहूँगी, तुम्हारी प्रॉपर्टी, गुज़ारा भत्ता, तुम्हारे एक-एक पैसे का हिसाब लेकर ही रहूँगी क्योंकि उन पर मेरा, मेरे बच्चों का अधिकार है। 

“सिम्पैथी गेन करने के लिए तुम यह जो तरह-तरह की कहानी समझाते रहते हो उसका मुझ पर कोई फ़र्क़ पड़ने वाला नहीं है। तुम हार्ट पेशेंट बन गए हो, यह हो गया, वह हो गया तुम्हारी ऐसी सारी बातें मेरे लिए किसी बकवास से ज़्यादा मायने नहीं रखतीं। यह सच है भी तो यह सब तुम्हारे कुकर्मों का फल है। वियाग्रा, शिलाजीत ठूँस-ठूँस कर घर से लेकर बाहर अपनी चुड़ैलों तक जो छुट्टा साँड़ बने घूमते रहते थे न, यह वही वियाग्रा, शिलाजीत निकल रही है। 

“हार्ट क्या अभी तो तुम और न जाने काहे-काहे के पेशेंट बनोगे, तुम्हारे कुकर्मों के रिज़ल्ट तो अभी आने शुरू ही हुए हैं। मैं जो कुछ कह रही हूँ, अपमानित कर रही हूँ यह भी रिज़ल्ट ही हैं। तुम जब तक ज़िन्दा रहोगे मैं तब तक चुन-चुन कर अपने एक-एक अधिकार लेती ही रहूँगी। तुम इस भ्रम में बिल्कुल नहीं रहना कि मैं तुम पर ज़रा भी तरस खाऊँगी। 

“तुम्हारे लिए अच्छा यही होगा कि मामले को बेवजह उलझाओ नहीं, डायवोर्स जितनी जल्दी एक्सेप्ट कर लो तुम्हारे लिए उतना ही अच्छा रहेगा। जितना तुम मामले को उलझाओगे, उसे लंबा खींचोगे, तुम्हारे लिए मन में मेरे उतनी ही ज़्यादा घृणा भरती जाएगी। और यह तो तुमने अच्छी तरह सुना ही होगा, पढ़ा-लिखा भी होगा, बहुत पढ़े-लिखे तो हो ही, जिसका तुम्हें घमंड भी बहुत है, कि ‘अति सर्वत्र वर्जयेत’। तो अगर तुमने ज़्यादा अति कर दी तो बहुत साफ़-साफ़ कह रही हूँ कि मजबूर होकर मैं तुमको यहीं कोर्ट में ही गोली मार दूँगी। बाद में जेल में रहते हुए भी बच्चों के लिए कोई न कोई रास्ता निकाल ही लूँगी। 

“यह जो तुम्हारी मक्कारी से भरी आँखें हैं ना, सोचते हो इनमें आँसू भरकर मेरी तरफ़ चुपचाप देखते हुए मेरी कठोर से कठोर बात सुनते रहोगे, इससे मैं तुम्हें सुधरा हुआ अच्छा इंसान मान लूँगी, सुबह का भूला शाम को लौट आया पथिक मान कर पिघल जाऊँगी तो यह तुम्हारी मूर्खता है, पागलपन है। 

“अभी क्या, अभी तो मैं तुम्हारी आँखों में हमेशा के लिए सच में ऐसे आँसू भरूँगी कि उनमें कभी मक्कारी भरे आँसुओं के लिए कोई जगह ही न रह जाएगी जिससे तुम घड़ियाली आँसू बहाने की कभी सोच भी न सको। 

“मेरे कलेजे को ठंडक तभी पहुँचेगी, उतना ही ज़्यादा पहुँचेगी जितना ज़्यादा तुम तिल-तिल करके मरोगे। मेरी समझ में तो यह नहीं आता कि आख़िर तुम कितनी मोटी चमड़ी के बने हो, कितने बड़े बेशर्म हो। इतने सालों से मैं तुम्हारी इतनी इंसल्ट करती आ रही हूँ, जब जब सामने पड़ते हो तब तब अपमानित करती हूँ फिर भी तुम पीछे पड़े हुए हो। 

“जब फ़ैमिली कोर्ट में हार गए, डायवोर्स हो गया, अब यहाँ हाईकोर्ट में भी वही होता तुम्हें साफ़-साफ़ दिख रहा है तो अब फँसाने के लिए नया जाल फेंका है, कह रहे हो कि हम लोग अच्छे दोस्त तो बन ही सकते हैं, एक दूसरे से मिल सकते हैं, बात कर सकते हैं। एक दूसरे के सुख दुःख बाँट सकते हैं, दोस्त भी तो एक दूसरे के सुख-दु:ख के साथी होते हैं। 

“यह जो फ़िल्म इंडस्ट्री या अल्ट्रा मॉडर्न होने के नाम पर कन्फ़्यूज़्ड लोगों की नौटंकी लेकर मेरे सामने आए हो कि डायवोर्स के बाद भी हम लोग दोस्त बने रह सकते हैं, इस पर मैं थूकती हूँ। क्योंकि यह दोस्ती नहीं डायवोर्स के बाद भी अय्याशी करते रहने का एक तरीक़ा है, धोखाधड़ी है उन नए लोगों के साथ जिनसे डायवोर्स के बाद रिश्ता बन सकता है। 

“तुम मेरी इस बात पर पूरा विश्वास रखो कि मैं तुमसे दोस्ती नहीं, हाँ दुश्मनी ज़रूर रखूँगी, जीवन भर रखूँगी, मैं इस पृथ्वी के आख़िरी छोर तक तुम्हारा साथ नहीं छोड़ूँगी। और अब अपना यह चेहरा दूसरी तरफ़ घुमा लो, अपनी इन घूरती आँखों से मुझे मत देखो, तुम्हारी आँखों में जो मक्कारी भरे आँसू हैं, इनमें मुझे तुम्हारे सारे कुकर्म दिखाई दे रहे हैं, उन्हें देख देख कर मेरा ख़ून और ज़्यादा खौल रहा है। कहीं और जाकर बैठो। 

“मैं कहीं अपना आपा न खो बैठूँ इसलिए कह रही हूँ हट जाओ मेरे पास से। मैं तुमसे दूर रहने के लिए पहले ही दो बार जगह बदल चुकी हूँ, लेकिन तुम बार-बार आकर बैठ जाते हो। अब मैं नहीं हटूँगी, हटना तुम्हें ही पड़ेगा।”

इतनी बातें कहकर वह चुप हो गई। उसका चेहरा तमतमाया हुआ था। आवेश में लगातार बोलते रहने के कारण वह हाँफ रही थी, बेतहाशा बढ़ा उसका ग़ुस्सा चेहरे पर साफ़ झलक रहा था। गोरा चेहरा लाल-सा हो रहा था। उसने कुछ देर तक प्रतीक्षा की कि उसका एक्स हस्बैंड वहाँ से हट जाए लेकिन वह वहीं बैठा ही रहा, उसके चेहरे को पूर्वत ऐसे देखता रहा जैसे बग़ल में बैठी एक्स वाइफ़ ने कुछ कहा ही नहीं। 

कोर्ट असेंबल होने ही वाली थी और एक्स वाइफ़ उसे देखने कुछ कहने के बजाय ऊँचाई पर रखी न्यायमूर्ति की ऊँची सी कुर्सी को देख रही थी, जहाँ कुछ देर में न्यायमूर्ति विराजमान होने वाले थे और आज उसके डायवोर्स पर अपनी मोहर लगाने वाले थे। उसे पक्का विश्वास था कि जीत उसी की होगी क्योंकि हिंदू कोड बिल के अनुसार हिंदू दंपती के सेपरेशन के लिए न्यूनतम जितने भी कारणों की आवश्यकता होती है उससे कहीं बहुत ज़्यादा कारण उपलब्ध थे। 

लेकिन यह डर भी उसके मन के एक कोने में समाया हुआ था कि यह एक्स हस्बैंड नाम का जीव यहाँ हारने के बाद भी हार मानेगा नहीं, यह सुप्रीम कोर्ट में ज़रूर जाएगा, फिर एक लंबा समय कोर्ट के चक्कर काटने में बीतेगा, लोअर कोर्ट फिर यहाँ धक्के खाते-खाते सात साल निकल चुके हैं। 

न जाने कितनी बार, कितने घंटे, वकील के पास उसके चेंबर में, कोर्ट के इन गलियारों में न्याय मूर्तियों के सामने बीत चुके हैं। सही तो यह है कि बर्बाद हो चुके हैं। बर्बाद तो सात वर्ष का एक एक पल हुआ है। इस प्राणी के कारण मेरा खाना-पीना, सोना, शान्ति, सुख-चैन का एक-एक क्षण बर्बाद हुआ है। 

मेरे बच्चों, मेरी सारी ख़ुशियाँ बर्बाद हुई हैं। कभी कितनी ख़ुशहाल हुआ करती थी यह ज़िन्दगी। हँसी-ख़ुशी में बीतते पलों के बीच एक एक दिन का कैलकुलेशन करके बच्चे पैदा करने की दोनों ने योजना बनाई उसे एग्ज़ीक्यूट किया, और भगवान की भी कितनी कृपा रही कि हमने शादी के चार साल बाद पहली संतान बेटी चाही तो बेटी ही हुई। 

सिजेरियन सर्जरी की ज़रूरत न पड़े, नॉर्मल डिलीवरी ही हो यह कामना भी पूरी हुई। बेटी स्वस्थ ख़ूबसूरत पढ़ने लिखने में ख़ूब तेज़ हो यह सब कुछ मन का ही हुआ। बेटी के चार साल का होने के बाद फिर बेटे का प्लान किया जैसा बेटा चाहा वैसा ही बेटा भी मिला। 

कितना अच्छा था यह आदमी, एक आयडल हस्बैंड की हर एक क्वालिटी थी इसमें, दोस्त रिश्तेदार हर जगह इसकी तारीफ़ ही तारीफ़ होती थी। मेरी एक पल की ख़ुशी के लिए भी कुछ भी करने को हमेशा तैयार रहता था। 

दो डिलीवरी के बाद एक दिन मज़ाक़ में ही सिर्फ़ इतना कहा कि, “मैं किसी अच्छे हॉस्पिटल में ब्रेस्ट लिफ़्ट, एब्डोमिनोप्लास्टी और लेबियाप्लास्टी करवाने की सोच रही हूँ। दो-दो डिलीवरी के बाद ये सब बहुत लूज़ हो गए हैं, एकदम बूढ़ी हो गई लगती हूँ। इससे तुम्हारा भी मूड मुझे पहले जैसा बनता नहीं दिखता।” 

यह व्यक्ति कितना ख़ुशी-ख़ुशी एक पल गँवाए बिना तैयार हो गया था। काफ़ी पैसा ख़र्च होना था लेकिन सब करके ऐसे ख़ुशी से झूम रहा था, जैसे कोई बड़ा ख़ज़ाना मिल गया हो। कमरे की सारी लाइट्स ऑन करके मुझे फ़ुल्ली अनड्रेस करके हर एंगल से बार-बार देखकर यही बोल रहा था अब तो तुम फिर से पचीस साल की ब्यूटी क्वीन लग रही हो। कितनी उत्तेजित करने वाली एक्टिविटीज़ कर रहा था . . . 

पता नहीं मुझसे कौन-सी ग़लती हो गई जो भगवान मुझसे इस क़द्र क्रोधित हो गए कि मुझसे मेरी सारी ख़ुशियाँ छीनने के लिए, इसके ऑफ़िस में अमीरा शेख़ को इसकी ज़िन्दगी में भेज दिया। उस शातिर बदतमीज़ औरत ने स्वर्ग से सुंदर मेरे घर को मेरी ज़िन्दगी को तहस-नहस कर दिया। 

तन-मन, बुद्धि, व्यवहार, विचार हर तरह से सुंदर से भी सुंदरतम मेरे इस एक्स हस्बैंड को निकृष्टतम आदमी बनाकर छोड़ दिया, इससे भी मन नहीं भरा तो दूसरे को पकड़ लिया, उसे बर्बाद कर तीसरे को पकड़ लिया। पैसा, शरीर की न जाने कितनी बड़ी भूख है उसकी जो पूरी ही नहीं होती। नित नए शिकार करने का उसका यह सिलसिला न जाने कहाँ जाकर रुकेगा। 

सत्यानाश हो इस एक्स्ट्रा मैरिटल अफ़ेयर क़ानून का जिसने एक परिवार, समाज को बर्बाद करने का हथियार सभी के हाथों में दे दिया, कि लो ख़ुद अपनी ज़िन्दगी, अपने परिवार में आग लगाओ। अरे जानवरों की दुनिया में भी परिवार, समाज को बनाए रखने के लिए क़ानून होते हैं, वह भी अपनी सीमा में रहते हैं, उल्लंघन करने वाले झुण्ड से बाहर खदेड़ दिए जाते हैं। 

यहाँ आज़ादी पर्सनल राइट्स के नाम पर छोड़ दिया सबको छुट्टा साँड़, साड़िनी की तरह। नियम क़ानून का कोई डर ही नहीं। क़ानून सज़ा का भय सबको काफ़ी हद तक रोके रहता है। सारा अंकुश ही ख़त्म कर दिया, बस जहाँ चाहो, जितना चाहो अपने पर्सनल राइट्स, आज़ादी के नाम पर मुँह मारते रहो। फूँकते रहो घर को अपने . . .। वाह रे क़ानून बनाने वाले, और वाह रे ऐसे क़ानून को मानने वाले मुर्खाधिराजों। 

वह ऐसी ही बातों में खोती जा रही थी कि तभी एक्स हस्बैंड ने कुछ कहने की कोशिश की तो वह एकदम आग बबूला हो उठी। जलती हुई आँखों से उसे घूरती हुई अपेक्षाकृत थोड़ी तेज़ आवाज़ में उसे डाँट दिया, “एकदम चुप रहो, मुझसे एक शब्द भी बोलना नहीं। इतना कुछ तुमको कह चुकी हूँ, ज़रा भी तुम्हें शर्म नहीं आती। मैं फिर कह रही हूँ कि तुम्हारी भलाई इसी में है कि यहाँ से उठकर तुरंत चले जाओ। अपना मनहूस चेहरा मुझे बिल्कुल मत दिखाओ।”

उसकी आवाज़ इतनी तेज़ थी कि आसपास बैठे लोगों ने भी सबकुछ साफ़ सुना। उसने कनखियों से इधर-उधर लोगों को देखा, उनके रिएक्शन को समझने की कोशिश की। और यह समझकर थोड़ी निश्चिन्त हो गई कि सभी अपने-अपने में खोए हुए हैं। अपने मुक़द्दमों के दुनिया से बाहर कुछ भी नहीं देख रहे हैं। 

बग़ल में बैठे एक्स हस्बेंड को वह बरदाश्त नहीं कर पा रही थी। उसने इधर-उधर हर तरफ़ नज़र दौड़ाई कि कहीं और बैठने की जगह दिखे तो वह फिर ख़ुद ही उठकर चली जाए, लेकिन दो दिन छुट्टी के बाद खुली कोर्ट में हर तरफ़ आदमी ही आदमी भरे हुए थे। कहीं अपना काला गाउन पहने वकील हाथों में फ़ाइल लिए अपने क्लाइंट से बात कर रहे थे, तो कहीं परिवार के लोग ही आपस में। 

ख़ुद उसका वकील उसे सारा ज्ञान देकर दूसरी तरफ़ एक दूसरे वकील के साथ बात करने में व्यस्त था। न्यायमूर्ति साहब का इंतज़ार करते-करते सभी ऊब रहे थे लेकिन न्यायमूर्ति जी प्रकट नहीं हो रहे थे। देखते-देखते प्रतीक्षा करते-करते दो घंटे से भी ज़्यादा समय बीत गया। 

बैग में रखी पानी की बोतल निकाल कर उसने दो-तीन बार केवल एक-एक घूँट पिया जिससे वॉशरूम जाने की ज़रूरत न पड़े। एक्स हसबैंड दो बार उठकर जा चुका था, मगर इतना शातिर था कि जाते समय अपना बैग कुर्सी पर ही रख कर जाता था, यह नहीं सोचता था कि कोई उठा कर ले जाएगा। 

उसके मन में अभी भी शायद यह सोच बनी हुई थी कि उसकी एक्स वाइफ़ तो बग़ल में बैठी हुई है, उसके सामान की रक्षा करेगी। पहली बार जाकर जब वह लौटा तो बिल्कुल पसीना-पसीना हो रहा था। शायद उसकी तबीयत कुछ गड़बड़ हो रही थी। आते ही उसने एक टैबलेट निकाल कर पानी के साथ निगल ली। 

उसकी दयनीय हालत देखकर लाख ग़ुस्से, घृणा के बावजूद उसके लिए एक्स वाईफ के मन में दया, करुणा के भाव उभर आए। उसके मन में आया कि पूछे क्या हो गया, इतना पसीना क्यों आ रहा है, इस बुरी तरह हाँफ क्यों रहे हो जैसे कि किसी फुटबॉल मैदान का एक चक्कर लगाकर आ रहे हो। 

मन में उठी इस भावना के बावजूद उसने अपना चेहरा फिर घूमा लिया न्यायमूर्ति की कुर्सी की तरफ़, देखने लगी उसे, वह अभी भी ख़ाली ही थी जबकि कोर्ट पूरी भरी हुई थी। मगर एक्स हसबैंड धीमी आवाज़ में थोड़े-थोड़े अंतराल पर उससे अपनी बात कहता चला जा रहा था, उसे पूरा विश्वास था कि उसकी एक्स वाइफ़ बग़ल में बैठे-बैठे उसे अनदेखा, अनसुना करते हुए भी उसकी सारी बातें सुन रही है। वह उसे इग्नोर कर ही नहीं सकती। उसकी बातों का उसके ऊपर प्रभाव ज़रूर पड़ेगा और कुछ न कुछ परिणाम भी सामने ज़रूर आएगा। 

लंच टाइम से थोड़ा पहले जैसे ही यह पता चला कि न्यायमूर्ति जी लंच के बाद आएँगे वैसे ही देखते-देखते पूरी कोर्ट ख़ाली हो गई। एक्स हस्बैंड का प्रयास भी सफल हो गया। अपनी एक्स वाइफ़ को लेकर थोड़ी ही दूर पर एक रेस्टोरेंट में बैठ गया। 

भूख दोनों को लगी थी क्योंकि सुबह-सुबह हल्का-फुल्का नाश्ता करके ही दोनों आए थे एक्स वाइफ़ इस शर्त पर उसके साथ नाश्ता करने को तैयार हुई कि वह अपना पेमेंट स्वयं करेगी उसके दिए पैसे का एक बूँद पानी भी नहीं पियेगी। उसकी इस ज़िद के आगे एक्स हस्बैंड को झुकना ही पड़ा। मगर उसे संतोष इस बात का था कि वह उसके साथ बैठकर बातचीत करने के लिए तैयार हो गई है। 

उसे डायवोर्स के कई ऐसे केस याद आए जो उसने मीडिया में देखे पढ़े थे कि कोर्ट में डिसीज़न के दिन ही हसबैंड वाइफ़ के बीच बिना किसी तीसरे की उपस्थिति के एक दूसरे के प्रति सारी शिकायतें ख़त्म हो गईं और वह ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर, अपने जीवन में वापस लौट गए। कोर्ट में अपने सारे केस वापस ले लिए। 

वह भी इसी आशा के साथ हर सम्भव प्रयास कर रहा था, टोस्ट के साथ कॉफ़ी पीते हुए उसके साथ बात कर रहा था, उसे बच्चों का, उसका वास्ता देते हुए, उनके भविष्य की बात कर रहा था। उसकी बातों का हर शब्द, हर अक्षर भावुकता की चाशनी में आकंठ डूबा हुआ था। 

एक्स वाइफ़ को हर तरह से यही समझाने का प्रयास कर रहा था कि उसे अपने किये पर बहुत पछतावा है, किसी के बहकावे में आकर वह भटक गया था। अपनी पिछली सारी ग़लतियों के लिए माफ़ी माँगता है, यह विश्वास भी दिलाता है कि जीवन में अब ऐसा कुछ भी करने की तो बात ही छोड़ो ऐसा सोचेगा भी नहीं। 

डायवोर्स केस ख़त्म करके हम दोनों फिर से अपना नया जीवन शुरू करते हैं। शुरू में उसकी बातें काफ़ी देर तक सुनने के बाद अचानक ही एक्स वाइफ़ ने बोलना शुरू किया और उसे एक तरह से डपटते हुए कहा कि, “अब तुम सिर्फ़ मेरी बात सुनोगे, बीच में एक शब्द नहीं बोलोगे, हर आदमी के बदलने सुधरने की एक सीमा होती है, एक स्टेज होती है, और तुम ऐसी सारी सीमाओं, स्टेज को क्रॉस करके ऐसे लतिहड़ शराबियों जैसे हो गए हो जो सालों नशा मुक्ति केंद्र में बिताने के बाद जैसे ही केंद्र के गेट से बाहर निकलते हैं तो उनका पहला क़दम शराब की दुकान की तरफ़ होता है। 

“आज मैं तुम्हारी इन शहद सरीखी मीठी, इमोशनल बातों को मान कर केस वापस ले लूँ, लौट चलूँ तुम्हारे साथ तो तुम घर पहुँचते ही उन चुड़ैलों के क़दमों में फिर नहीं लोटने लगोगे इस बात की क्या गारंटी? और सबसे बड़ी बात तो यह है कि तुमने उन चुड़ैलों के क़दमों में लोटना बंद तो अब भी नहीं किया है। 

“वास्तव में तुम मुझे इमोशनली ब्लैकमेल कर रहे हो, बच्चों के नाम पर, उनके भविष्य के नाम पर लेकिन मैं तुम्हारी नस नस से इतना ही परिचित हूँ जितना तुम्हें ईश्वर जानता है। इसलिए तुम्हारा वास्तविक चेहरा मुझे सामने दिख रहा है, जो तुम दिखाने का प्रयास कर रहे हो वास्तव में वह है ही नहीं। 

“तुम बच्चों की क़सम दे-दे कर मुझसे बात कर लेते हो, बार-बार मुझसे मिल लेते हो, कहते हो माँ बाप के बिना बच्चों का जीवन बर्बाद हो जाएगा, वह मानसिक रूप से पूरी तरह से डेवलप नहीं हो पाएँगे, उनके चेहरे, उनके जीवन में वास्तविक ख़ुशी कभी नहीं आ पाएगी। 

“मैं भी जीवन-भर हर क्षण घुट-घुट कर ही जीती रहूँगी, भले ही मैं नौकरी कर रही हूँ, मुझे पैसों की कोई कमी नहीं है, मायके वाले भी मेरा पूरा सपोर्ट कर रहे हैं, अपने पैसों से एक मकान भी ले लिया है, मुझे तुम्हारे या किसी के भी सहारे की वास्तव में कोई आवश्यकता है ही नहीं, लेकिन मेरी इस पूरी दुनिया में घर की ख़ुश्बू, ख़ुशियों की महक तभी होगी जब तुम फिर से हमारी ज़िन्दगी में आ जाओगे, फिर से हम पुरानी दुनिया में लौट चलेंगे। 

“तुमने क्या-क्या कुतर्क नहीं किये, पैसे से लेकर अपनी प्रॉपर्टी तक सब कुछ देने का लालच दिया, जब इसका भी कोई प्रभाव मुझ पर पड़ता नहीं दिखा तो मुझे मेरी उम्र, जीवन में शारीरिक सुख की इम्पोर्टेंस लोभ मोह में उलझाने लगे। 

“बड़े अपनत्व, किसी दार्शनिक की तरह समझाने लगे कि, ‘अभी तुम्हारी कोई इतनी उम्र नहीं हो गई है कि संन्यासिनी सा जीवन जियो। अभी तो चालीस बयालीस की ही हो रही हो, शरीर को सिर्फ़ खाने की ही भूख नहीं होती, जीवन सिर्फ़ खाने से ही नहीं चलता, शरीर को शरीर की भी भूख लगती है। अगर उसकी वह भूख ना मिटाई जाए तो वह धीरे-धीरे नहीं बहुत जल्दी ही ख़त्म हो जाता है। यह प्रकृति का ही बनाया नियम। और तुम ख़ुद अपने को दर्पण में देखो ना, इतने सालों में ही तुम्हारी आँखों, चेहरे पर उदासियों की इतनी मोटी परत है कि कोई भी देखते ही यही कहेगा कि तुमने सारी दुनिया के सारे दुख अकेले ही समेट रखे हैं। इसलिए मेरी बात मान लो . . .’

“अरे तुम्हें यह सब कहते हुए ज़रा भी संकोच नहीं हुआ कि तुम मुझे सेक्स करने का लालच दे रहे हो। मुझे अपनी तरह समझ रहे हो, तुम्हारे लिए सेक्स ही सारा जीवन होगा, सेक्स ही सारी दुनिया होगी, बिना उसके तुम जीते जी मर जाओगे। तुम जियो पशुओं की तरह सेक्स की हवस में। 

“मैं इंसान हूँ, इंसान की तरह जीना, रहना पसंद करती हूँ। इतना दिन रहे मेरे साथ, इतना भी नहीं समझ सके मुझे। तुम इस ग़लतफ़हमी में जी रहे हो कि अगर तुम वापस मेरी ज़िन्दगी में नहीं आए तो मैं तुम्हारी तरह जगह-जगह मुँह मारती फिरूँगी। सात साल हो रहे हैं, अगर छछूँदरों की तरह हर तरफ़ मुँह मारती भटक रही होती तो अब तक घर बाहर, रिश्तेदारी, दुनिया में हर तरफ़ तुम्हारी तरह गंधा रही होती। 

“अच्छी तरह समझ लो, मेरे लिए मेरे बच्चे, उनका भविष्य, मेरा आत्मसम्मान इससे बढ़ कर दुनिया में और कुछ भी नहीं है। सात साल से अकेली रह रही हूँ, सेक्स नहीं कर रही हूँ तो क्या ज़िन्दा नहीं हूँ? अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरी नहीं कर रही हूँ? और जो तुम इसी सेक्स में डूबे हुए हो तो कौन सा काम कर ले रहे हो? 

“कभी शीशे में देखते हो ख़ुद को, लगता है जैसे किसी जूट के बोरे को रेहु (सूखी बंजर ज़मीन में लवणता अधिक होने पर ऊपरी सतह पर बिलकुल सफ़ेद रंग की पाउडर जैसी एक परत जम जाती है, इसमें कास्टिक सोडा के गुण होते हैं, धोबी लोग पहले इसका प्रयोग कपड़े धोने के लिए करते थे। ज़्यादा होने पर यह कपड़े, त्वचा दोनों को गंभीर क्षति पहुँचाता है) में कई दिन डुबो के रखने बाद ख़ूब निचोड़ कर मई जून की तप्ती दोपहरी सुखा दिया गया। 

“अपनी हवस की पूर्ति के लिए अपनी ज़िम्मेदारियों को छोड़कर भागने वाले भगोड़े आदमी, आत्मसम्मान, समाज में अपनी इज़्ज़त सबको डस्टबिन में फेंक कर जो उन चुड़ैलों के संग उछलते-कूदते रहते हो, जो तुम्हारे शब्दों में बेड पोलो है, उसे खेलते हुए तुमने कौन सा काम कर लिया है। 

“मैं जो कर रही हूँ, मैं जहाँ हूँ, तुम मेरे पैरों की धूल के बराबर भी हो? सोचो ज़रा, उसके बाद मुझे सेक्स का लालच देना। मुझे कह रहे हो कि बिना सेक्स के मैं अजीब बुझी-बुझी दिखती हूँ, लगता है जैसे बरसों से पति के शोक में डूबी कुम्हलाती ही जा रही कोई विधवा हूँ। शरीर सूखता जा रहा है, उसकी रंगत बुरी तरह धूमिल पड़ चुकी है। 

“ख़ुद को देखने की ज़रूरत मुझे है ही नहीं, एक तुम ही हो जिसे दर्पण के सामने बार-बार खड़े होने की ज़रूरत है। ज़रा देखो जाकर एक बार कि जब तक पचास जगह मुँह नहीं मारते थे, छछूँदर की तरह छुछुआते नहीं थे, तब कैसे थे और जब छुछुआने लगे तब कैसे हो गए हो? 

“आईना क्षण भर में तुम्हें धिक्कारते हुए बता देगा कि तुम मृत्यु दंड पाए उस हत्यारे से लग रहे हो, जिसे दंड देने के लिए ले जाया जा रहा है और भय से उसकी हालत ऐसी हो गई जैसे उसके प्राण दंड मिलने से पहले ही निकल गए हैं, लोग एक मृत ठंडा शव लिए जा रहे हैं फँदे पर लटकाने के लिए। ख़ुद की हालत ऐसी और मुझे सेक्स की इंपॉर्टेंस बता रहे हो, तुम्हें ज़रा भी शर्म नहीं आती . . .” 

आवेश में वह बोलती ही जा रही थी, और एक्स हसबैंड उसकी इन कठोर बातों को सिर झुकाए सिर्फ़ सुनता रहा, सामने प्लेट में रखी चीज़ें प्रतीक्षा करती हुई-सी दिखती रहीं कि जिसके लिए वह आई हैं, वह उसे उठाए मुँह में रखे, खाए। मगर एक्स वाइफ़ की प्लेट में रखी चीज़ें बड़ी ख़ुशक़िस्मत थीं कि वह जिनके लिए आई थीं वह प्रचंड फ़ायरी अंदाज़ में बात करते हुए भी उन्हें पूरे सम्मान के साथ खाती चली जा रही थी, जैसे वह सामने बैठे अपने दुश्मन को इसके ज़रिए भी गहरी चोट दे रही कि तुम तो इतने कमज़ोर हो कि अपना खाना भी नहीं खा पा रहे हो और मुझे देखो कि मैं तुम्हारी सारी कुटिल चालों, कुचालों, हमलों को हँसते हुए झेलती आ रही हूँ, तुम्हें मुँहतोड़ जवाब भी देती आ रही हूँ। और यहाँ पूरी मस्ती के साथ कॉफ़ी भी पी रही हूँ। तुम्हारी हमारी तो बराबरी ही नहीं हो सकती। कहाँ तुम थके हारे, एक सरेंडर किए हुए सैनिक की तरह मेरे सामने घुटनों में बैठे हुए हो और मैं एक विजेता की तरह तुम पर हँस रही हूँ। 

अपनी बातों से वह एक्स हस्बेंड की सारी आशाओं पर बार-बार ख़ूब पानी डालती रही मगर उसने भी प्रयास नहीं छोड़ा और जुटा रहा उम्मीद की एक किरण के सहारे कि सामने बैठी उसकी एक्स वाइफ़ एक दिन उसकी बातों को मान ही लेगी, क्योंकि वास्तव में वह जितना कठोर दिख रही है, उतना वह है ही नहीं। 

क्योंकि उसके इस कठोर हृदय के पीछे एक और हृदय है जो दशहरी आम की तरह नर्म मुलायम और मिठास से भरा हुआ है। कोई आश्चर्य नहीं कि अचानक ही यह घृणा, कठोरता की सारी दीवारें गिराती हुई यह कहे, चलो ठीक है, पिछली सारी बातें भूल कर हम दोनों एक हो जाते हैं। आओ चले फिर से लौट चलें अपने घर, अपने बच्चों, अपनी तुम्हारी ज़िन्दगी में फिर से नई ख़ुशियाँ भरते हैं। दुनिया में इस जीवन को जीते हैं . . . 

भोजनावकाश समाप्त होने को हुआ तो एक्स वाइफ़ उठती हुई बोली, “लंच टाइम ख़त्म हो रहा है, मैं जा रही हूँ।” और सौ का एक नोट निकाल कर उसके सामने रखते हुए कहा, “यह मेरा पेमेंट . . .”

और तीर सी निकल कर जल्दी-जल्दी कोर्ट पहुँच गई कि वहाँ कम से कम बैठने की जगह तो मिल ही जाए, क्योंकि न्यायमूर्ति महोदय का कोई ठिकाना नहीं कब आएँगे, कब उसका नंबर आएगा, कब वह अपना निर्णय देंगे और उसे ज़िन्दगी के सबसे स्याह पक्ष से, उस आदमी से हमेशा के लिए मुक्ति मिलेगी, जिसने एक अच्छा इंसान होने की बातों को दरकिनार कर, सबसे ख़राब इंसान होने, बनने के लिए कोई कोर कसर बाक़ी नहीं रखी है। 

उसके पीछे-पीछे एक्स हस्बैंड भी आकर फिर से उसी के बग़ल में बैठ गया, फिर से अपनी वही बातें करने लगा। कि हम हसबैंड वाइफ़ ना सही, एक अच्छे दोस्त की तरह तो मिल ही सकते हैं, कुछ समय तो साथ-साथ बिता ही सकते हैं। 

बार-बार एक अच्छा दोस्त बनने के प्रयासों के पीछे उसकी मंशा यह थी कि मुक़द्दमा तो वह यहाँ भी एकतरफ़ा हार रहा है। लेकिन उसके बाद यदि वह दोस्त की तरह मिलता रहा तो अपने प्रयासों से वह अपनी एक्स वाइफ़ को वाइफ़ बनाने में सफल हो जाएगा, फिर से पुराने जीवन में लौट चलेगा। 

मगर यह उसका भ्रम था, वह यह नहीं समझ पा रहा था कि उसकी एक्स वाइफ़ उसकी इस मंशा को अच्छी तरह समझ रही है, जान रही है कि यह व्यक्ति बहुत सोच समझ कर हारी हुई बाज़ी को फिर से जीतने के लिए एक रास्ता बनाए रखना चाहता है, इसी उद्देश्य से बार-बार दोस्ती की बात करता चला आ रहा है। 

न्यायमूर्ति की प्रतीक्षा फिर से लम्बी होती चली गई, उन दोनों की बातें भी। यह दोनों ही शाम होते-होते अचानक ही उस समय समाप्त हो गईं जब पता चला कि न्यायमूर्ति महोदय आज नहीं आएँगे। वह कहीं किसी कार्यक्रम में व्यस्त हो गए हैं। 

यह जानते ही वहाँ उपस्थित हर आदमी के चेहरे पर एक निराशा थी, ग़ुस्से के भाव थे, सभी कुछ ना कुछ कहते हुए ज़मीन पर ऐसे क़दमों से चलते बाहर निकल गए जैसे अपना ग़ुस्सा ज़मीन को कुचलते हुए निकाल रहे हों। वह दोनों भी उठे और चल दिए। 

एक्स हस्बैंड ने कई बार कोशिश की कि वह उसके साथ फिर से कहीं बैठकर बात करे, लेकिन एक्स वाइफ़ ने उसकी एक बात नहीं सुनी। एक कैब बुक करके घर के लिए चल दी। न्यायमूर्ति के लिए बार-बार उसके मन में कठोर शब्द आते रहे। कुछ ही दिन पूर्व पढ़ी वह न्यूज़ उसे याद आ रही थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल से लेकर देश के राष्ट्रपति तक को किसी भी मामले को तीन महीने के अंदर ही पूरा करने का आदेश दिया था। 

मन ही मन वह बार-बार कह रही थी कि राज्यपाल, राष्ट्रपति तक को तो तुमने अपनी सीमा से बाहर जाकर आदेश दे दिया कि वह अपना काम एक निश्चित समय तीन महीने में पूरा कर दें लेकिन स्वयं के लिए कब स्वतः संज्ञान लेंगे, एक निश्चित समय में ख़ुद अपना भी काम पूरा करेंगे। अपना काम समय से करते होते तो तुम्हारी कोर्टों में जो करोड़ मुक़द्दमों का अंबार दिन दूना रात चौगुना बढ़ता ही जा रहा है, वह नहीं बढ़ता। 

इस बात से भी तुम्हारे कानों में जूँ क्यों नहीं रेंगती कि पूरी दुनिया में कुल जितने मुक़द्दमे पेंडिंग पड़े हैं, उससे कहीं ज़्यादा मुक़द्दमे तुम्हारी कोर्टों में पेंडिंग हैं। कब सोचोगे इस बारे में कि तुम अपना कोई आदेश, कोई निर्णय सुनाने को जितनी गंभीरता से लेते हो उससे पहले उतनी गंभीरता से यह क्यों नहीं सोचते कि उस निर्णय, आदेश का प्रभाव कितना अच्छा कितना बुरा होगा। 

एक बार फिर से अपने एक्स्ट्रा मैरिटल रिलेशनशिप क़ानून के बारे में जनहित, राष्ट्रहित में स्वतः संज्ञान लेते हुए यह विचार क्यों नहीं कर लेते कि इसके चलते परिवार किस तरह तबाह हो रहे हैं। क्या यह तब सोचोगे जब लाखों करोड़ों घर बर्बाद हो चुके होंगे, समाज खोखला हो चुका होगा या फिर जब तुम्हारे घरों में भी आग लगेगी, तुम्हारे ऐसे खोखले क़ानून से जब तुम्हारी बीवियाँ, तुम्हारे हस्बैंड भी ऐसे ही जगह-जगह इंवॉल्व होंगे, जब तुम्हारे घरों में भी अँधेरा छाएगा . . . 

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