भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

39. सिहर रहा है वुजूद

 

क्यों धौंकनी की तरह
गति से धड़क रहा है यह दिल
कुछ यूँ जैसे उखड़ रही है साँसें
सिहर रहा है वुजूद . . . 
 
उस दस्तक से, जो बिना आहट
आती है मेरे दिल के दर पर
बिन बुलाए महेमान की तरह, 
बेमौसम बारिश जैसी
अपने शीतल आग़ोश में भरने को . . .
पर जाने क्यों सहम रहा है तन
सिहर रहा है वुजूद। 
 
उन याद के थपेड़ों से
जो मुसलसल बारिश में
भीगे तन, भीगे मन, व भीगी आँखों से
उस टहनी से मात्र एक सूखे पत्ते की तरह
ख़ुद को गिरते देखेकर, ख़ूब डरी
तब गिरी थी, गिर कर उठी थी
तब भी सिहर रहा था वुजूद . . . 
 
और आज, बीते दिनों की बारिश
यादों की पालकी में बैठी
मन लुभाती रामलीला रच रही है
अपने शीतल बाँहों में भरने को . . .
पर क्यों, क्यों
सिहर रहा है वुजूद . . . 
 
आज फिर, पहले से कहीं ज़्यादा
जब गिरी थी, गिर कर उठी थी
उठकर सँभली थी, पर
अब के गिरी, तो शायद न उठ पाऊँगी
गिरना, गिर कर उठना
उठकर सँभलना बार-बार मुमकिन नहीं
शायद इसीेलए
सिहर रहा है वुजूद . . . 

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