भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

32. लौट चलो घर अपने

 

मन पथरा गया है
गति ठहर गई है
शब्द जीेवित हो उठे हैं
शब्द नहीं वे शस्त्र हैं जैसे
निशब्दता में कह रहे
इतने भी अनजान बनो मत
वक़्त तुम्हें ललकार रहा
आओ लौट चलो घर अपने
मैं हूँ आगे आगे तुम्हारे
पीछे पीछे आना हमारे
लौट के घर है जाना तुमको। 

<< पीछे : 31. रावण जल रहा आगे : 33. उम्मीद बरस रही है >>

लेखक की कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
ग़ज़ल
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो