भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

3. सुप्रभात

 

सूर्य उगा
उजाला बिखरा
किरणें इर्द गिर्द, आसपास अँधेरों से
ढूँढ़ते ढूँढ़ते अपना रास्ता
सुबह को आख़िर ले ही आईं
समस्त काइनात नहा उठी उजाले में
भीतर कहीं नाद प्रतिध्वनित हुआ
‘उठ जाग मुसाफ़िर भोर भई
अब रैन कहाँ जो सोवत है।”

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