भीतर से मैं कितनी खाली (रचनाकार - देवी नागरानी)
3. सुप्रभात
सूर्य उगा
उजाला बिखरा
किरणें इर्द गिर्द, आसपास अँधेरों से
ढूँढ़ते ढूँढ़ते अपना रास्ता
सुबह को आख़िर ले ही आईं
समस्त काइनात नहा उठी उजाले में
भीतर कहीं नाद प्रतिध्वनित हुआ
‘उठ जाग मुसाफ़िर भोर भई
अब रैन कहाँ जो सोवत है।”
विषय सूची
- प्रस्तावना – राजेश रघुवंशी
- भूमिका
- बहुआयामी व्यक्तित्व की व्यासंगी साहित्यिकारा देवी नागरानी
- कुछ तो कहूँ . . .
- मेरी बात
- 1. सच मानिए वही कविता है
- 2. तुम स्वामी मैं दासी
- 3. सुप्रभात
- 4. प्रलय काल है पुकार रहा
- 5. भीतर से मैं कितनी ख़ाली
- 6. एक दिन की दिनचर्या
- 7. उम्मीद नहीं छोड़ी है
- 8. मैं मौत के घाट उतारी गई हूँ
- 9. क्या करें?
- 10. समय का संकट
लेखक की कृतियाँ
- साहित्यिक आलेख
- कहानी
- अनूदित कहानी
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- ग़ज़ल
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- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
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