भीतर से मैं कितनी खाली (रचनाकार - देवी नागरानी)
9. क्या करें?
क्या करें क्या न करें
पहले कहते थे ये करो
फिर कहते थे वो करो
घर में बैठो, मत हाथ मिलाओ
वही किया जो कहा गया, मन को अपने मारकर
ताली बजाई, दिए जलाये
अब फिर बदल दिए हैं सभी नियम
कहते हैं तुम ख़ुश रहो
तुम मुस्कुराआप, बिलकुल मत घबराओ
अच्छे दिन फिर आयेंगे
कल कहेंगे नाचो गाओ
क्या पता नहीं हमें क्या करना हमका
क्या याद रखना है, क्या भूल जाना है
नहीं, नहीं भूल सकते गुज़रे कल के दिन
यादें उन बीते दिनों की,
अब करोना की सरकार है
वादों की दरकार है
छोड़ दो हमको हाल पे अपने
मत कहो क्या करना हमको
साँसें ये जो चल रही हैं
ख़ुशबू भी कुछ टहल रही
यही ग़नीमत आज है ‘देवी’
बातों से अब मत बहलाओ।
विषय सूची
- प्रस्तावना – राजेश रघुवंशी
- भूमिका
- बहुआयामी व्यक्तित्व की व्यासंगी साहित्यिकारा देवी नागरानी
- कुछ तो कहूँ . . .
- मेरी बात
- 1. सच मानिए वही कविता है
- 2. तुम स्वामी मैं दासी
- 3. सुप्रभात
- 4. प्रलय काल है पुकार रहा
- 5. भीतर से मैं कितनी ख़ाली
- 6. एक दिन की दिनचर्या
- 7. उम्मीद नहीं छोड़ी है
- 8. मैं मौत के घाट उतारी गई हूँ
- 9. क्या करें?
- 10. समय का संकट
लेखक की कृतियाँ
- साहित्यिक आलेख
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- अनूदित कहानी
- पुस्तक समीक्षा
- बात-चीत
- ग़ज़ल
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- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
- अनूदित कविता
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