भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

34. क़ुदरत परोस रही

 

क्या ही मनोहर विचार है
सुंदरता बाहर भीतर निखर रही
महक जिसकी बिखर रही है
शब्द में प्रयासरत है
कुछ कहने को मन की बात
क़ुदरत भी प्रयासरत है
कुछ देखेने की नज़र बख़्शने को
किसको क्या देना है
किससे क्या लेना है
मत सोचो
मत विचार लाओ मन में
बस देखते जाओ जो सामने है
बस स्वीकार करो जो सामने है
यही तो क़ुदरत परोस रही
आज भी
कुछ तेरे लिए
कुछ मेरे लिए। 

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