भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

10. समय का संकट

 

समय साथ नहीं दे रहा
कोई अपने पास नहीं रहा
एकांत में सोच के ताने बाने जटिल हुए हैं
आती जाती ख़बरों के चक्रव्यूह से 
निकलने की कोई सूरत सामने नहीं
उलझे हुए दिन व बेसुकून सी रातों को
आधी अधूरी नींद का सरमाया
यह रोज़ रोज़ का जागना सोना
खाना पीना भी लाइलाज सी बीमारी लगने लगी है
क्या करें इसकी दवा
क्या माँगें किसी से दुआ
बस अपने हाथों को उठा कर
उससे कहते हैं अब उठा ले
क्योंकि अब जीना जीवन सा नहीं लगता। 

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