इसलिए ही तो तुम जान हो मेरी
पवन कुमार ‘मारुत’
(मनहरण कवित्त छन्द)
प्रिया प्रेमिका पहचानी पगली पहेली-सी,
समझदार सजनी सुहानी सुबह-सी।
चिक चक्षु चाल चंचल चन्द्रमा चाँदनी से,
प्रण परवाने-सा प्यारी पलाश पुष्प-सी।
आनन्द आगार अरु अपनापन अथाह,
संग सुख शोक सहे संगिनी सागर-सी।
प्रणय परिपूर्ण प्यारे प्राण “मारुत” मेरे,
चमकती चारु जीवन-ज्योति जुगनू-सी॥
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