भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

कुछ तो कहूँ . . .

 

प्रस्तुत काव्य संग्रह ‘भीतर से मैं कितनी खाली’ - उड़ान है उम्मीद की, अभिमान की और स्वाभिमान की। जब भी किसी रचनात्मक लेखन की नींव रखी जाती है, उसमें सुविधाओं का, संवेदनाओं का जीवंत दस्तावेज़ तैयार किया जाता है। देवी नागरानी द्वारा रचित इस काव्य संग्रह - ‘भीतर से मैं कितनी खाली’ में सामाजिक परिस्थितियों के साथ-साथ भाव मानवीय संवेदनाओं और भीतर से मनुष्य के खोखलापन, आत्मीयता और अभिव्यक्ति के साथ रचनाएँ प्रस्तुत हैं। इस काव्य संग्रह में कुछ प्रतिनिधि कविताएँ ली गई हैं और करोना काल के दरम्यान जीवन के प्रति अपनी सोच को सकारात्मकता के साथ कविताओं के माध्यम से अपने नज़रिए को अभिव्यक्त किया गया है। कविताओं में सुख, समृद्धि और सुविधाएँ मौजूद होने के बावजूद भी कहीं ना कहीं मनुष्य भीतर ही भीतर एक ख़ालीपन महसूस करता है। काव्य संग्रह ‘मैं भीतर से कितनी खाली’ भरपूर भाव और भाषा के संगम के साथ प्रस्तुत किया गया है। मनुष्य चाहे कितना भी खुश हो, कितनी भी सुविधाएँ सुख मिल जाएँ लेकिन भीतर से हमेशा ही कुछ न कुछ पाने की तमन्ना लिए हुए दिखाई देता है। इस काव्य संग्रह में ऐसे ही भाव निरंतर कविताओं में प्रस्तुत हुए हैं। दिल की भाषा दिल ही जनता है। शब्द जिस्म से होकर जब मुख तक आते है तो भाषा मुखर हो जाती है। जहाँ निशब्द की बर्फ़ जमी होती है, वहीं दर्द को शब्द देकर मनोभावों को अभिव्यक्त करते हुए प्रस्तुत काव्य में भिन्न कोण दिखाई देते हैं। मैं देवी नागरानी को हृदय से बधाई देता हूँ। उन्होंने ऐसी परिस्थितियों में इस काव्य संग्रह को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। अपने संघर्ष के साथ यह काव्य संग्रह विश्व भर में पाठकों का केंद्र बना रहेगा। करोना काल में जो मुसीबत लोगों पर आई इस काव्य संग्रह में निश्चित ही कहीं न कहीं अपने ही जिए हुए दर्द के रूप में जरूर दिखाई देगा। निश्चय ही यह काव्य संग्रह आधुनिकता और 21वीं सदी में सिद्ध होने के फल-स्वरूप समाज को एक नई दिशा प्रदान करने की कोशिश मात्र होगी। इसी उम्मीद और अपेक्षा के साथ मैं देवी नागरानी का आभार व्यक्त करता हूँ और प्रस्तुत काव्य संग्रह को साहित्यकारों, पाठकों तक और पाठकों की सोच के साथ जुड़ता हुआ एक बंधन है। आज समाज में स्वार्थ अधिक हो गया है और अब कोई मसीहा जन्म लेने वाला भी नहीं दिखाई देता। अपने संघर्ष के चक्रव्यूह से खुद ही जूझकर निकलना है।

शुभकामनाओं के साथ
डॉक्टर कामराज सन्धु
हिंदी विभाग
हरियाणा केंद्रीय विशिेवद्यालय,
महेंद्रगढ़

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