भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

38. लड़ाई लड़नी है फिर से

 

मैली सी सुबह
साँझ के पहले ही काली हो जाती हैं
काली सी रात में कहाँ ढूँढ़ें ये धुँधली आँखें
उस पाक़ीज़ा सुबह की पहली किरण को
कैसे देखे ये धुँधली आँखें जिन्हें
अपनी आहट से थपथपा कर उठाती है सुबह
जगाती है उन ज़मीरों का
जो ढूँढ़ते हैं उन पदचिन्हों को
जिन पर चलकर ईसा मसीह ने
मानवता को गले लगाया
ख़ुद को सूली पर चढ़वाया
क्या अब पैदा नहीं होते ऐसे मसीहा
जो इस बेज़मीरों की भीड़ में
मानवता को ललकारते हुए
ख़ुद को बेल चढ़ा दें। 

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