भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

30. रात का मौन

 

सुप्रभात होने को है
रात का मौन
शबनमी बूँदों से मुस्कराया है
हलचल से प्रभात चहक उठी है
चिड़ियों की चहचहाहट से
प्रकृति झू्म रही है
मुर्ग़ की बाँग सुन
गुनगुनाहट के ताल पर
क़ुदरत साथ गा रही है। 

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