भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

18. मन की गाँठें

 

कितनी गाँठें मन में मेरे बँधी हुई हैं
समय के साथ जब खुलती हैं
दबी हुई टकसाल से तब
नवाज़ जाती है मुझको
उन अनुभूतियों से जो
हमारे भीतर सुस्ता रही थी
करवट बदलते हुए टटोल रही थी
लड़ रही थी विश्वास और अविश्वास का द्वंद्व
पर अब धुँधलापन सोच का दूर हुआ है
अब अभिव्यक्ति मार्ग दर्शक बन रही है
तेरी मेरी हर उस औरत की
जिसके भीतर में वो गाँठें खुल रही हैं
अब अनुभूति से अभिव्यक्ति के सफ़र में
यह क़लम की ताक़त ही है, 
जो हमारे भीतर को बाहर से जोड़ती आ रही है
एक योद्धा की तरह
निडर
निश्चिंत
सोच के क़दम आगे और आगे बढ़ते जा रहे हैं
बेख़बर उन पगडंडियों से
जो पीछे छोड़ आए
सामने आगे की नई सड़क
अपने आलिंगन में भरने को खड़ी है
हर नारी पात्र को
जो पथरीली राह से गुज़रकर
इस सड़क पर आ पहुँची है
अब यह सड़क
उसका स्वागत करने स पीछे नहीं हटेगी
नहीं हटेगी। 

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