हे ऊर्ध्वरेता भीष्म! आप अजूबा क़िस्म के महामानव थे
विनय कुमार ’विनायक’
हे ऊर्ध्वरेता भीष्म! आप अजूबा क़िस्म के महामानव थे
महामानव बनने के क्रम में लाचार अतिमानव बनते गए
पिता की कामुकता, माँ का प्रपंच बचाने में पाप करते गए
भला कौन पुत्र अपने ही जैविक पिता का विवाह कराता?
कौन पिता युवा पुत्र को कुँवारा छोड़ स्वयं विवाह करता?
हे अष्टवसु! आप शान्तनु और माँ गंगा की आठवीं संतति
दाम्पत्य सुख हेतु आपके पिता ने सात पुत्रों की हत्या देखी
आपके भाइयों की हत्या करने वाली आपकी माँ गंगा ही थी
गंगा ऐसी जिसने प्रतीप से प्रेम किया, शान्तनु से की शादी
ये प्रतीप कोई और नहीं शान्तनु के पिता, भीष्म के दादा जी!
‘तस्य रुपगुणोपेता गङ्गा स्त्रीरुपधारिणी/ अधीयानम्य राजर्षे
दिव्यरुपा मनस्विनी/दक्षिणं शालसंकाशमूरुं भेजे शुभानना/
प्रतीपस्तु महीपालस्तामुवाच यशस्विनी/ त्वामहं कामये राजन्
भजमानां भजस्व माम्’ अर्थ ‘स्त्रीरुपिणी गंगा राजर्षि प्रतीत के
दाहिने ऊरु में बैठ बोली हे राजन! मैं कामवश आपको चाहती’
पर प्रतीप ने दायाँ ऊरु वधू आसन जान पुत्र से करायी शादी!
(महा आदि पर्व अ 97)
गंगा विचित्र प्रेम व सात पुत्रों की हत्या से विपथगा कहलाती
उच्छृंखल गंगा आठवें पुत्र भीष्म को जीवन दे, छोड़ गई पति
शांतनु ने भीष्म को मृत्यु भय दिखा दूसरी शादी की चाह की
दूसरी माँ मत्स्यगंधा के पिता ने ऊर्ध्वरेता होने की सलाह दी
भला देवव्रत सा कौन पुत्र होगा जिन्होंने देखा केवल छल ही!
भीष्म को पिता ने डराया; एक आँख व एक पुत्र नहीं होने जैसे
‘चक्षुरेकं च पुत्रश्च अस्ति नास्ति च भारत/ चक्षुर्नाशे तनोर्नाशः
पुत्रनाशे कुलक्षयः’एक चक्षु व एक पुत्र क्षय से तन व कुल क्षय’
ये बात क्या एक पिता पर लागू नहीं होती, एक पिता मरने से
क्या दूजा पिता बनाए जाते या वंशवृद्धि ना होती एक पुत्र से?
हे भीष्म! आपके पिता व निषाद नाना ने ग़ज़ब का छल किया
आपसे उत्तराधिकार छीना औ’ आपको निर्वंशिया का जीवन दिया
‘ऊर्ध्वरेता भविष्यामि दाश सत्यं ब्रबीमि मे’ ये ब्रह्मचर्य नैष्ठिक
सुन पितृ ने वर दिए ‘न ते मृत्यु: प्रभविता यावज्जीवितुमिच्छति’
ये इच्छामृत्यु क्या पुत्र को शादी कराके नहीं दी जा सकती थी?
ऐसी स्थिति में कौन विरासती गद्दी त्यागी कुँवारा संन्यासी
परित्यक्त पितृ धन वैभव राजपाट सम्पत्ति का बनता न्यासी?
भला कौन पराए पुरुष को कुलवधू अनुज विधवाओं के साथ
नियोग संभोग कर संतान उत्पत्ति की देता है युक्ति अनुमति
और आपद्धर्म में भी प्रण नहीं तोड़ करता है कुल कलंकित?
हे भीष्म! व्यास संग कुल वधुओं की नियोग युक्ति आपने दी
आपकी सौतेली माँ मत्स्यगंधा अंबिका व अंबालिका से कहती
“कौशल्ये! धर्मतंत्रंत्वां यद्ब्रवीमि निबोध तत्/भरतानं समुच्छेदो
ममभाग्यसंक्षयात् व्यथितां माँ च संप्रेक्ष्य पितृवंश च पीड़ितम्
भीष्मोबुद्धिमदान्मह्यं कुलस्यास्यविवृद्धये— (म आदि अ104)
‘हे कौशल्ये! धर्मयुक्त सलाह देती हूँ मेरे दुर्भाग्य से भरत वंश
का अंत जान भीष्म ने पितृ कुल वृद्धि हेतु (नियोग) युक्ति दी’
मत्यगंधा-पराशर के जारज पुत्र व्यास से, जो नहीं थे भरतवंशी,
पराशर पिता शक्ति, शक्ति पिता वशिष्ठ वरुण पुत्र पर्शियावासी,
भीष्म प्रण व नियोग संयुक्ति ने कुरुवंश की मिट्टी पलीद की!
भला कौन ऐसा अग्रज होता होगा जो निर्वीर्य शक्तिहीन कायर
सौतेला अनुज के ख़ातिर स्वयंवर परम्परा का विधान तोड़ कर
तीन—पतिम्बरा कन्याओं; अंबा अंबिका अंबालिका को अपहृत कर
कापुरुष अनुज विचित्रवीर्य को निर्बाध विलास के लिए परोसता
जिसने कामजनित क्षयरोग से मृत हो अल्पायु में वैधव्य बाँटा?
भला कौन पितृ विरासत के संरक्षक कुलीन ज्येष्ठ सुपुत्र होगा?
जो वंशहीनता के कगार पर पहुँच चुके अपने कुल वंश व गोत्र
चलाने के लिए कुलवधू विधवाओं से पाशविक नियोग संयुक्ति
सौतेली माँ के कानीन जारकर्म से संभूत पुत्र को स्वीकृति देगा?
कहाँ पढ़े पुत्र प्राप्ति हेतु नारी से परपुरुष नियोग संभोग करेगा?
भला मनुस्मृति की पशु नियोग रीति महाभारत में किसने लिखी?
भृगु ऋषि या महाभारतकार व्यास ने भीष्म मुख से कहलवा दी?
या कूटचाल थी वशिष्ठ की स्ववंशधर व्यास को सत्ता दिलाने की?
ये वशिष्ठ भृगु ईरानी अहुरमज्दा वरुण संतति आक्रांता जाति थी
जो गो चोरी के नाम मनुर्भरती क्षत्रियों को शाप दे सत्ता पाती थी!
कहे वाल्मीकि वशिष्ठ ने भूप विश्वामित्र संहार हेतु आक्रांता पाले
उन्होंने गो से शक यवन पहलव म्लेच्छ काम्बोजादि बर्बर निकाले
‘तस्या हुंभारवोत्सृष्टाः पह्लवाः शतशो नृप/ भूय एवासृजद् घोरान्
शकान् यवनमिश्रितान्/तस्या हुंकारतो जाताः काम्बोजा रविसंनिभाः
रोमकूपेषु म्लेच्छाश्च हारीताः सकिरातकाः।’ (रा बा कां सर्ग54/55)
ऐसा ही इन्द्रप्रदत गो चोरी का मिथ्या आरोप पर्शिया के आक्रांता
जमदग्नि पुत्र परशुराम ने हैहयवंशी भूपाल सहस्रार्जुन पर लगाया
इक्कीस बार आक्रमणकर पुत्र पौत्र सहित क्षत्रिय कुल संहार दिया
आख़िर सहस्त्रों गोदानी क्षत्रिय विप्र का एक गो क्यों चुराते भला?
क्यों विश्वामित्र सहस्रार्जुन अष्टवसु की वशिष्ठ भृगु ने की दुर्दशा?
क्यों वशिष्ठ भृगु क्षेत्रीय क्षत्रिय क्षेत्र के वासी हो भूप को लुभाते थे?
क्यों इन्द्रप्रदत सुरलोक की गो सुरभि की झूठी महिमा गा सुनाते थे?
क्यों क्षत्रिय सेना को छप्पन भोग खिलाना कामधेनु कृपा बताते थे?
क्यों एक सुरभि के बहाने भूपालों के लाख गोदान भूदान भुलाते थे?
क्यों भरतवंशी राजाओं को एक कामधेनु गो चुराने को उकसाते थे?
अष्टवसुओं की वरुणपुत्र आपव ऋषि वशिष्ठ ने की भीषण दुर्गति
आठवें वसु द्यो ने पत्नी के कहने पर नंदनवन की नंदिनी पकड़ी
जो वशिष्ठ को सुरेंद्र से मिली थी जो स्वर्गलोक की सुरभि गो थी
जो वशिष्ठ की कामधेनु सबला कहलाती वशिष्ठ को छप्पन भोग
खिलाती, वशिष्ठ की सेना शक पह्लव यवन को छिपा रखती थी!
यही एक गो अनेक नाम सुरभि नंदिनी कामधेनु सबला कहलाती
कभी वशिष्ठ कभी भृगु जमदग्नि परशुराम आश्रम चली जाती थी
भूपालों को ललचाती, ख़ुद की चोरी करवाती, शाप दिलाती, मरवाती
अष्टवसु को इसी गो चोरी के आरोप में वशिष्ठ ने किया शापित
देवयोनि से हुए भूपतित जन्में भीष्म रूप में रहे आजीवन पीड़ित!
हाय भीष्म! आप तो ग़ज़ब क़िस्म की कुलीनता के संपोषक थे
भला कौन कुँवारी कैवर्त्या व दुर्गंधयुक्त कुरूप वशिष्ठ प्रपौत्र से
नियोग द्वारा उत्पन्न जारज जन्मांध अयोग्य पुत्र धृतराष्ट्र को
पैत्रिक राजगद्दी के वैध उतराधिकारी घोषितकर सेवक हो जाते?
इससे बेहतर आप यति हो जाते या रोती अंबा का पति हो जाते!
सौतेले अनुज विचित्रवीर्य की विधवाओं संग नियोग प्रस्ताव पर
व्यास ने कहा,‘यदि पुत्रः प्रदातव्यो मया भ्रातुरकालिकः/विरूपतां
में सहतां ततोरेतत् परं व्रतम्/यदि में सहते गन्धं रूपं वेषं तथा
वपुः अद्यैव गर्भे कौशल्या विशिष्टं प्रतिपद्यताम्!’ (म आ 104)
निश्चय ही पराशरपुत्र व्यास अति कुरूप बदरंग भयंकर वपु का!
हे भीष्म! व्यास ने माँ मत्स्यगंधा सत्यवती से स्वयं कहा था
‘यदि मुझे समय का नियम न रख शीघ्र अपने अनुज के लिए
पुत्र प्रदान करना है तो ये देवियाँ मेरे असुन्दर रूप से नहीं डरें
यदि कौशल्या अम्बिका मेरे गंधयुक्त कुरूप देह को सहन करें
तो वे गर्भ में उत्तम पुत्र पा सकतीं’ पर वे डरी अंधे की माँ हुई!
हे महामहिम! नियोग संतति अंधे धृतराष्ट्र को पितृगद्दी दे दी
जो ‘न भूतो न भविष्यति’ किसी अंधे को सत्ता नहीं सौंपी जाती
आपने गांधार राज सुबल की कन्या गांधारी को अपहृत कर ली
और धृतराष्ट्र को व्याह दी, जिससे कुपित हुआ सुबल पुत्र शकुनि
भला कौन पितृव्य चाहेगा उनकी आत्मजा सजा भोगे अजा जैसी?
निरंकुश धृतराष्ट्र ने गांधारी के सारे परिजनों को बहुत यातना दी
धृतराष्ट्र कारा में मुट्ठी भर अनाज से बचे केवल शकुनि जीवित
शकुनि ने ठानी धृतराष्ट्र संतति नाश करने की और नाश कर दी,
अनय का क्षय क्षात्र धर्म, शकुनि की धमनी में ख़ून था नहीं पानी
कथा सिर्फ़ इतनी नहीं शांतनु के पुत्र भीष्म की मजबूरी क्या थी?
भीष्म प्रतिज्ञा आजीवन कुँवारापन व राजगद्दी त्याग तब तक ही
जब तक पिता शान्तनु से मछुआरन गर्भोत्पन्न संतान जीवित थी,
शान्तनु व मछुआरन सत्यवती पुत्र चित्रांगद अनुज विचित्रवीर्य की
मृत्यु के बाद, विधवा वधुओं के साथ मछुआरन की जारज संतति
व्यास संग घृणित नियोग प्रस्ताव पर भीष्म ने क्यों दी सहमति?
हे भीष्म! आप राजा शान्तनु के ज्येष्ठ औरस पुत्र महामहिम थे
फिर भी क्यों दीन हीन थे, पिता के क्षेत्रज संतान से डरे सहमे?
हस्तिनापुर के आप पिताश्री की पुश्तैनी राजगद्दी के संरक्षक थे
क्यों पितृक्षेत्र में विचित्रवीर्य धृतराष्ट्र दुर्योधन सा खरपतवार उगे?
कुलवधू द्रोपदी के वस्त्र जब उतारे गए आप क्यों मूक-बधिर बने?
जनश्रुति कहती जिसका अन्न खाना होता, उससे तो डरना ही होता,
तो क्या आप धृतराष्ट्र दुर्योधन या अपने पिताश्री के अन्न खाते थे?
फिर क्यों पितृक्षेत्र में उगे अवांछित झाड़ पात कुपात्र से डरे खड़े थे?
आप सैकड़ों बाणों से बिंध कई दिन मकरसंक्रांति तक अधमरे पड़े थे
वो काँटों पर सर्प फेंकने नहीं, वधू की नग्न देह देखने से तीर गड़े थे!
नारी का अपमान कोई ईश्वर अवतार भगवान कभी नहीं सह सकते
क्योंकि नारी कोख से सारे ईश्वर तीर्थंकर बुद्ध गुरु धरातल पर आते
आप प्रणवीर कुँवारे रहे, पर नारियों को कापुरुषों की खेती बनाते रहे
आप भ्रमित चित्त के राजपुरुष थे, आजीवन ग़लतफ़हमी के शिकार रहे
आपके भीषण प्रण ने कुरुवंश को जारज कायर करके समर में झोंके!
आपने देखा नहीं क्या जिन्होंने हथियार नहीं उठाने का प्रण लिया?
उस कृष्ण ने बहन के सिंदूर ख़ातिर प्रण छोड़ आप पर चक्र उठाया
फिर आपने दुर्जन दुर्योधन को द्रोपदी चीरहरण की मनहूस घड़ी में
क्यों नहीं अपने पैत्रिक राजगद्दी से उतार दिया और संहार किया?
क्यों सिंदूरदान न देने का शपथ ले सिंदूर पोंछने का कुपथ चलाया?
हे भीष्म आप अजीब क़िस्म के हठधर्मी थे आपके द्वारा अपहरित
बेचारी अंबा पतिम्बरा भावी पति शाल्व द्वारा ठुकराई गुरु संग आई,
आप निज गुरु परशुराम से लड़ पड़े अपने प्रण से तनिक नहीं डिगे
काश गुरु आज्ञा से प्रण तोड़के अंबा को परिणय की दे देते स्वीकृति
तब अंबा न आत्मदाह करती न शिखंडी हाथों होती आपकी अवनति!
आपका क्षात्रधर्म मारकाट था अगर वक़्त पर दुर्योधन को काटे होते
तो फिर महाभारत रण में अनेक प्रिय परिजनों को नहीं काटने होते
आप कुल के पितामह थे क्यों कटे अभिमन्यु सा नाबालिग़ परपोते?
धृतराष्ट्र दुर्योधन दुशासन के जीते जी कहाँ सम्भव था सत्यमेव जयते
हे भीष्म पूछता है भारत पुण्य की बातें करते क्यों लिए पक्ष पाप के?
हे भीष्म पूछता है मनुर्भरती आपने पाण्डवों का पक्ष क्यों नहीं लिया?
क्या थी आपकी मंशा, पाण्डव के प्रति व्यास की क्या नहीं अनुशंसा?
क्यों द्रोण भी पाण्डवद्रोही हुए जिसने प्रिय अर्जुन को दी थी धनुर्विद्या
सच ये है कि जिस नियोग से कौरव को व्यास ने बनाया वशिष्ठगोत्री
उसी नियोग से आत्रेय दुर्वासा ने पाण्डु भार्या पुत्रों को किया अत्रिगोत्री!
अपने नियोग पुत्र धृतराष्ट्र व पौत्र दुर्योधन से व्यास को अतिलगाव था
व्यास ने गर्भज्ञानी हो गांधारी के गर्भपिंड को सौ पुत्र में विलगाव किया
व्यास ने ही युद्ध दर्शन हेतु धृतराष्ट्र सारथी संजय को दिव्य दृष्टि दी
पर उन्होंने धृतराष्ट्र दुर्योधन में सत्य अहिंसा भाईचारा की ना बुद्धि दी
हे भीष्म आप चाहते तो न्याय दे जाते पर व्यास की ऐसी योजना न थी!
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अक्षर अक्षर नाद ब्रह्म है अक्षर से शब्द जन्म लेते अर्थ ग्रहण करते
- अजब की शक्ति है तुलसी की राम भक्ति में
- अधिकांश धर्मांतरित हो जाते स्वदेशी संस्कृति से दूर
- अपने आपको पहचानो ‘आत्मानाम विजानीहि’ कि तुम कौन हो?
- अपरिचित चेहरों को ‘भले’ होने चाहिए
- अब राजनीति में नेता चोला नहीं अंतरात्मा बदल लेते
- अब सत्य अहिंसा मार्ग में बाधा ही बाधा है
- अमृता तुम क्यों मर जाती या मारी जाती?
- अर्जुन जैसे अब नहीं होते अपनों के प्रति अपनापन दिखानेवाले
- अर्जुन होना सिर्फ़ वीर होना नहीं है
- अर्थ बदल जाते जब भाषा सरल से जटिल हो जाती
- अहिंसावादी जैन धर्म वेदों से प्राचीन व महान है
- अक़्सर पिता पति पुत्र समझते नहीं नारी की भाषा
- अफ़सर की तरह आता है नववर्ष
- आज हर कोई छोटे से कारण से रूठ जाता
- आज हर जगह संकट में क्यों जी रहा है आदमी?
- आत्मा से महात्मा-परमात्मा बनने का सोपान ये मनुज तन
- आदमी अगर दुःखी है तो स्वविचार व मन से
- आयु निर्धारण सिर्फ़ जन्म नहीं मानसिक आत्मिक स्थिति से होती
- आस्तिक हो तो मानो सबका एक ही है ईश्वर
- आख़िर हर जगह हिन्दू ही क्यों मारे जाते हिन्दू क्यों संहारे जाते?
- इस धुली चदरिया को धूल में ना मिलाना
- उर्वशी कोई हूर परी अप्सरा नहीं उर में बसी वासना होती
- ऋषि मुनि मानव दानव के तप से देवराज तक को बुरा लगता
- एक अकेला शिव शव होता
- एक ईमानदार मुलाज़िम होता मुजरिम सा निपट अकेला
- एक ईमानदारी के कारण मैंने जिया तन्हा-तन्हा जीवन
- ऐसा था गौतम बुद्ध संन्यासी का कहना
- ओम शब्द माँ की पुकार है ओ माँ
- कबीर की भाषा, भक्ति और अभिव्यक्ति
- करो अमृत का पान करो अमृत भक्षण
- कर्ण पाँच पाण्डव में नहीं था कोई एक पंच परमेश्वर
- कर्ण रहे न रहे कर्ण की बची रहेगी कथा
- कहो नालंदा ज्ञानपीठ भग्नावशेष तुम कैसे थे?
- कहो रेणुका तुम्हारा क्या अपराध था?
- कृष्ण के जीवन में राधा तू आई कहाँ से?
- कोई भी अवतार नबी कवि विज्ञानी अंतिम नहीं
- चाणक्य सा राजपूतों को मिला नहीं सलाहकार
- चाहे जितना भी बदलें धर्म मज़हब बदलते नहीं हमारे पूर्वज
- जन्म पुनर्जन्म के बीच/कर्मफल भोगते अकेले हिन्दू
- जातियों के बीच जातिवाद हिन्दुओं को कर रहा बर्बाद
- जिसको जितनी है ज़रूरत ईश्वर ने उसको उतना ही प्रदान किया
- जो भाषा थी तक्षशिला नालंदा विक्रमशिला की वो भाषा थी पूरे देश की
- ज्ञान है जैविक गुण स्वभाव जीव जंतुओं का
- तब बहुत याद आते हैं पिता
- तुम कभी नहीं कहते तुलसी कबीर रैदास का डीएनए एक था
- तुम बेटा नहीं, बेटी ही हो
- तुम राम हो और रावण भी
- तुम सीधे हो सच्चे हो मगर उनकी नज़र में अच्छे नहीं हो
- दया धर्म का मूल है दया ही जीवन का सहारा
- दशमेश पिता गुरु गोविंद सिंह सोढ़ी की गाथा
- दस सद्गुरु के गुरुपंथ से अच्छा कोई पंथ नहीं
- दान देकर भी प्रह्लाद पौत्र बली दानव और कर्ण सूतपुत्र ही रह गए
- दानवगुरु भार्गव शुक्राचार्य कन्या; यदुकुलमाता देवयानी
- दुनिया-भर के बच्चे, माँ और भाषाएँ
- दुर्गा प्रतिमा नहीं प्रतीक है नारी का
- धनतेरस नरकचतुर्दशी दीवाली गोवर्द्धन भैयादूज छठ मैया व्रत का उत्स
- नादान उम्र के बच्चे समझते नहीं माँ पिता की भाषा
- नारियों के लिए रूढ़ि परम्पराएँ पुरुष से अलग क्यों होतीं?
- नारी तुम वामांगी क़दम क़दम की सहचरी नर की
- नारी तुम सबसे प्रेम करती मगर अपने रूप से हार जाती हो
- परमात्मा है कौन? परमात्मा नहीं है मौन!
- परशुराम व सहस्त्रार्जुन: कथ्य, तथ्य, सत्य और मिथक
- पिता
- पिता बिन कहे सब कहे, माँ कभी चुप ना रहे
- पूजा पद्धति के अनुसार मनुज-मनुज में भेद नहीं करना
- पूर्वोत्तर भारत की गौरव गाथा और व्यथा कथा
- पैरों की पूजा होती मगर मुख हाथ पेट पूज्य नहीं होते
- प्रकृति के विरुद्ध आचरण ही मृत्यु का कारण होता
- प्रश्नोत्तर की परंपरा से बनी हमारी संस्कृति
- प्रेम की वजह से इंसान हो इंसानियत को बचाए रखो
- बचो सत्ताकामी इन्द्रों और धनोष्मित जनों से कि ये देवता हैं
- बहुत अधिक प्यार करनेवाली माँ गांधारी कुन्ती कैकई यशोदा होती
- बहुत ढूँढ़ा उसे पूजा नमाज़ मंत्र अरदास और स्तुति में
- बुद्ध का कहना स्व में स्थित होना ही स्वस्थ होना है
- ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और राजर्षि विश्वामित्र संघर्ष आख्यान
- ब्राह्मण कौन?
- भगवान राम कृष्ण भी पूर्वजन्म के कर्मफल से बचा नहीं कोई
- भारत की अधिकांश जातियाँ खत्ती-खत्तीय क्षत्रियों से बनी
- मन के पार उतर कर आत्मचेतना परम तत्त्व को पाना
- मनुष्य को मनुर्भवः यानी मनुष्य बनने क्यों कहा जाता है?
- मनुष्य प्रभाव से प्रभावित होता अच्छा बुरा बर्ताव करता
- मनुस्मृति के भेदभावपूर्ण ज्ञान से सनातन धर्म का नहीं होगा उत्थान
- माँ
- मानव जाति के अभिवादन में छिपा होता है जीवन दर्शन
- मानव जीवन का अंतिम पड़ाव विलगाव के साथ आता
- मानव सर्वदा से मानवीय विचारधारा की वजह से रहा है जीवित
- मिथक से यथार्थ बनी ययाति कन्या माधवी की गाथा
- मेरी माँ
- मैं उम्र की उस दहलीज़ पर हूँ
- मैं कौन हूँ? साकार जीवात्मा निराकार परमात्मा जीवन आधार हूँ
- मैं चाहता हूँ एक धर्म निरपेक्ष कविता लिखना
- मैं बिहार भारत की प्राचीन गौरव गरिमा का आधार हूँ
- मैं भगत सिंह बोल रहा हूँ मैं नास्तिक क्यों हूँ?
- मैं ही मन, मन ही माया, मन की मंशा से मानव ने दुःख पाया
- मैं ही मन, मैं ही मोह, मन की वजह से तुम ऐसे हो
- मैंने जिस मिट्टी में जन्म लिया वो चंदन है
- यक्ष युधिष्ठिर प्रश्नोत्तर: एक पिता द्वारा अपने पुत्र के संस्कार की परीक्षा
- यम नचिकेता संवाद से सुलझी मृत्यु गुत्थी आत्मा की स्थिति
- यह कथा है सावित्री सत्यवान व यम की
- ये ज्ञान जो मिला है वो बहुत जाने अनजाने लोगों से फला है
- ये पवित्र धर्मग्रंथ अपवित्र हो जाते
- ये सनातन कर्त्तव्य ‘कृण्वन्तो विश्वम आर्यम’
- रावण कौरव कंस कीचक जयद्रथ क्यों बनते हो?
- रावण ने सीताहरण किया भांजा शंबूक हत्या व भगिनी शूर्पनखा अपमान के प्रतिकार में
- रिश्ते प्रतिशत में कभी नहीं होते
- वही तो ईश्वर है
- श्रीराम भारत माता की मिट्टी के लाल थे
- संस्कृति बची है भाषाओं की जननी संस्कृत में ही
- सत्य सदा बदल रहा तुम किस सत्य को पकड़े हो
- सबके अपने अपने राम अपने राम को पहचान लो
- सीता मंदोदरी गर्भेसंभूता चारुरूपिणी क्षेत्रजा तनया रावण की
- सोच में सुधार करो सोच से ही मानव या दानव बनता
- हर कोई रिश्तेदार यहाँ पिछले जन्म का
- हर जीव की तरह मनुष्य भी बिना बोले ही बतियाता है
- हे अग्नि! राक्षसों से हिंसकों से रावण से हमें बचाओ
- हे ऊर्ध्वरेता भीष्म! आप अजूबा क़िस्म के महामानव थे
- हे मानव अपनी मानवता को बचाए रखना
- ॐअधिहिभगव: हे भगवन! मुझे आत्मज्ञान दें
- ख़ामियाँ और ख़ूबियाँ सभी मनुज जीव जंतु मात्र में होतीं
- नज़्म
- ऐतिहासिक
- हास्य-व्यंग्य कविता
- विडियो
-
- ऑडियो
-