भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

4. प्रलय काल है पुकार रहा

 

कौन है जो पर्दे की आड़ से
पुकार रहा है बारम्बार मुझे
आवाज़ देकर जगा रहा है—
जागो उठो समेटो ख़ुद को
आया हूँ मैं तुम्हें जगाने 
आया हूँ तो जाऊँगा भी
साथ मगर लेकर मैं तुमको
जागो उठो समेटो ख़ुद को
आज अभी है वक़्त तुम्हारा
ग़फ़लत छोड़ो चेतो मन में
तुझमें मुझमें कौन है समाया
दे रहा अवकाश सभी को
आज है तेरा, कर तू मन की
कल तो काल के कर में निश्चित
जी लिया भरपूर है तुमने 
करना था जो ख़ूब किया वो 
इच्छाओं का कुआँ है ये मन
कभी नहीं जो भरता है
रहा है ख़ाली, ख़ाली रहेगा
नहीं भरेगा, नहीं भरेगा, 
ख़ुद को ख़ाली करते जाओ 
आओ मेरे साथ चलो तुम
अब निज देश को जाना है
कौन है जो पर्दे के पीछे
पुकारता है बारम्बार मुझे
आवाज़ देकर जगा रहा है—
देवी तुम हो आत्मा, 
मैं हूँ आत्मा का परमात्मा। 

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