भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

19. रेंग रहे हैं

 

जाएँ तो जाएँ कहाँ
सामने रास्ता खुला हुआ
ठिकाना लापता
चलते चलते भूख का अहसास
पानी की तलाश में मन हताश
मन में एक अनिच्छा का बोझ
कांधों पर ढो रहे हैं
अपने ही अरमानों की अर्थी
न होश है न जोश है
जीवन का कोई रौशनदान नहीं
जो भीतर की घुटन को ज़ब्त करे
बस अधमरी आशा को ढो कर लिए जा रहे हैं
वहाँ जहाँ से कोई वापस लौटता नहीं
ख़ुद का सलीब अपने कंधों पे लिए
रेंग रहे हैं। 

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