भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

21. जोश

 

परिंदों की उड़ान
मेरे इरादों में जोश भरती है
मैं उड़ तो नहीं सकती
पर
दुगने साहस से बढ़ती हूँ आगे
लकिर यह विश्वास
कि मैं उड़ तो नहीं सकती
पर वक़्त के साथ हो हमक़दम
चल तो सकती हूँ।

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