भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

1. सच मानिए वही कविता है

 

कविता का मौन भी बतियाता है
जब वह ख़ुद का पढ़वाती है
साहित्य के मंच पर
डफली पीटने की बात होती है
सच है इस भरमार की तादाद है
भीड़ भी है, 
कवियों से ज़्यादा कविताओं की
पर भीड़ में कहीं कोई कविता
अलग, सबसे अलग भी होती है
जिससे रूबरू होकर
उसे पढ़ते-पढ़ते
सोच ठिठक जाये तो लगता है
फिर से पढ़ लो
सच मानिए वही कविता है
जो ख़ुद को पढ़वाती है
बाक़ी तो ख़ैर बातें हैं, बातों का क्या? 
एक बात जो ठोस है
जिसका लोहा मैं भी मानती हूँ
कि क़लम की धार अपनी पहचान
ख़ुद करवाती है। 
उस क़लम के तेवर इतने पैने होते है
कि कोरे काग़ज़ पर लिखी वह तहरीर
दिल की दीवारों पे याद बनकर चिपक जाती है
वही कविता है
जो ख़ुद का पढ़वाती है। 
सच मानिए वही कविता है

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