आईना

डॉ. परमजीत ओबराय (अंक: 280, जुलाई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

आईना वही है—
चेहरे बदल गए, 
पुराने चेहरे लगे—
दिखने अब नए-नए। 
 
भावनाएँ डूब गईं अब—अंतर्गुहा में, 
दिखावा हो गया—
प्रधान, 
आज के इस जहान में। 
 
रिश्ते वही—
व्यवहार बदल गए, 
धरती वही है—
लोग बदल गए। 
 
आत्मा है वही—
शरीर बदल गए, 
हेर-फेर के इस—
प्रांगण में
हृदय बदल गए। 
 
भगवान है तुझमें—
न दिया ध्यान तूने, 
 आकर, रहकर—
शरीर घट में, 
बिना आदर पाए—
चले गए। 
 
बाद में पछताने से—
क्या होगा, 
शरीर तो अब—
मिट्टी में मिल गए। 

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