कैनेडा का नाम भारत में और विशेष रूप से पंजाब प्रांत में बहुत आत्मीयता से लिया जाता है। ऐसा लगता है कि पंजाब के हर तीसरे घर से कोई न कोई ’कनाडा’ में रहता है या जाने का इंतज़ार कर रहा है। इस तरह कैनेडा अपने में ’छोटा पंजाब और छोटा भारत’ बसाए रखने के लिए प्रसिद्ध है। इस हिसाब से पंजाबी भाषा यहाँ की प्रमुख अप्रवासी भाषाओं में सहज ही सम्मिलित हो जाती है। पिछले वर्षों के आँकड़ों की तुलना करने पर दिखाई देता है कि 2011 से 2016 के बीच हिंदी बोलने वालों की संख्या में 26.0 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है जबकि पंजाबी बोलने वालों की 18.2 %, उर्दू बोलने वालों की 25% और गुजराती बोलने वालों की संख्या में 20.9% की बढ़ोत्तरी हुई है। (आँकड़े-साभार-statcan.gc.ca)
हिंदी बोलने और समझने वालों की संख्या बढ़ने का एक कारण यह भी हो सकता है कि अपनी मातृ भाषा और अँग्रेज़ी के ’अतिरिक्त’ भाषा में लोगों ने हिंदी को रखा हो, जो भी कारण रहा हो पर यह सच है कि यह बढ़ती संख्या, हिन्दी भाषा प्रसार के साथ ही भारतीय संस्कृति और साहित्य के प्रसार का सूचक भी है। कैनेडा में हिंदी भाषा का इतिहास लगभग सौ साल पुराना है और साहित्य की यात्रा लगभग हमें पिछले सत्तर-पचहत्तर वर्षों से ही दिखाई देती है। तकनीकी के बढ़ते युग में यह यात्रा निरंतर समृद्ध और सशक्त हो रही है, इसमें संदेह नहीं है। अनेक ब्लॉग, पत्र-पत्रिकाएँ, प्रकाशन कैनेडा की इस समृद्धि के द्योतक हैं। इसी यात्रा पर हम आपको लिए चल रहे हैं इस विशेषांक में। आइये, पढ़िए और मिलिए यहाँ के वरिष्ठ और नए साहित्यकारों से . . .
कैनेडा के कुछ और रचनाकार
’साहित्यकुंज’ में प्रकाशित कैनेडा के कुछ और लेखक जो आपको विशेषांक में अलग से नहीं दिखे पर कैनेडा के हिंदी साहित्य में उनका भी महत्वपूण योगदान है, उनके साहित्य से निम्नलिखित लिंक पर मिलिए:
- स्व. अखिल भंडारी: https://sahityakunj.net/lekhak/akhil-bhandari
- डॉ. आशा मिश्रा: https://sahityakunj.net/lekhak/asha-mishra
- डॉ. इंदु रायज़ादा: https://sahityakunj.net/lekhak/indu-raizada
- इंदु शर्मा: https://sahityakunj.net/lekhak/indu-sharma
- डॉ. कनिका वर्मा: https://sahityakunj.net/lekhak/kanika-verma
- डॉ. नरेन्द्र ग्रोवर https://sahityakunj.net/lekhak/narender-grover-anand-musafir
- डॉ. निर्मला आदेश https://sahityakunj.net/lekhak/nirmala-adesh
- पंकज ’होशियारपुरी’ https://sahityakunj.net/lekhak/pankaj-sharma
- पाराशर गौड https://sahityakunj.net/lekhak/parashar-gaud
- भगवत शरण श्रीवास्तव ’शरण’ https://sahityakunj.net/lekhak/bhagwat-sharn-srivastav
- डॉ. भारतेंदु श्रीवास्तव https://sahityakunj.net/lekhak/bhartendu-srivastav
- भुवनेश्वरी पांडे https://sahityakunj.net/lekhak/bhuvneshwari-pandey
- विद्या भूषण धर https://sahityakunj.net/lekhak/vidya-bhushan-dhar
- श्याम त्रिपाठी https://sahityakunj.net/lekhak/shiam-tripathi
- आचार्य संदीप कुमार त्यागी ’दीप’ https://sahityakunj.net/lekhak/sandeep-tyagi-deep
- समीर लाल ’समीर’ https://sahityakunj.net/lekhak/sameer-lal-sameer
- प्रो. हरिशंकर आदेश https://sahityakunj.net/lekhak/harishankar-adesh
- मीना चोपड़ा https://sahityakunj.net/lekhak/meena-chopra
जो रचनाकार इस विशेषांक में प्रकाशित हो रहे हैं, उनकी अनेक रचनाएँ साहित्यकुंज में पहले से भी प्रकाशित होते रहे हैं अत: इन रचनाकारों की अनेक रचनाएँ आप उनके लिंक पर जाकर देख सकते हैं।
संकलन डाउनलोड करें: हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा ने पिछले वर्ष कैनेडा के गद्य और पद्य साहित्य के दो संकलन प्रकाशित किए थे। यह संकलन निःशुल्क ई-पुस्तक के रूप में डाउनलोड करने के लिए उपलब्ध हैं। नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें। पुस्तकबाज़ार.कॉम पर रजिस्टर होकर यह दोनों संकलन आप अपने मोबाइल या कंप्यूटर पर निःशुल्क डाउनलोड कर सकते हैं।
पहले आप गूगल प्ले स्टोर से पुस्तक बज़ार.कॉम की निःशुल्क ऐप्प डाउनलोड करें (Allow all permissions) फिर ई-पुस्तकें डाउनलोड करें। सभी के लिंक हैं:
पुस्तक बाज़ार ऐप्प: https://play.google.com/store/apps/details?id=com.pustakbazaar.android
संभावनाओं की धरती - कैनेडा गद्य संकलन: http://pustakbazaar.com/books/view/39
सपनों का आकाश - कैनेडा पद्य संकलन: http://pustakbazaar.com/books/view/37
संपादकीय - हिंदी के मानचित्र पर कैनेडा
मित्रो,
बसंत पंचमी की आप सब को अनंत शुभकामनाएँ! बसंत प्रतीक है जीवन और उल्लास का। साहित्य का बसंत उसके लेखकों की रचनात्मकता है। आज के दिन लेखक माँ सरस्वती से प्रार्थना कर अपने लिए शब्द, भाव, विचार, सद्बुद्धि, ज्ञान और संवेदनशीलता माँगता है, हम भी यही प्रार्थना करते हैं कि मानव मात्र में जीने की ऊर्जा और रचने का उल्लास और सामर्थ्य बना रहे, मनुष्य की मनुष्यता बची रहे!
पिछले दो वर्ष में कोरोना के दुख और संकट ने दुनिया को जितना निकट ला दिया, वह अकल्पनीय था। यह समय दैहिक स्तर पर जितना कष्टकारक था, साहित्यिक स्तर पर उतना ही उर्वर भी था। पिछले कुछ वर्षों से प्रवासी साहित्य के प्रति भारत में रुचि और उत्सुकता बढ़ ही रही थी, कोरोनाकाल में सचमुच हिन्दी का एक विश्व-ग्राम प्रकट हुआ। इस ग्राम के लोग दुनिया के हर कोने से हैं और अपने प्रकाशनों को साझा करने के साथ-साथ इन्होंने अपने देशों की स्थितियों और जीवन की कठिनाइयों को भी साझा किया तथा एक-दूसरे को हिम्मत बँधाई। भारत में संबंधियों को चिकित्सा की समस्या पर किसी के एक पोस्ट डालने पर जिस तरह व्हाट्सएप पर दुनिया भर के भारतीय मदद के लिए दौड़े आए, वह अभिभूत कर देने वाला था, यही नहीं, उसके बाद भी उनकी खोज-ख़बर लेना, भारत में आवश्यक संपर्क देना आदि सभी इस हिंदी ग्राम की आत्मीयता का अप्रतिम उदाहरण हैं। संभवत: पहली बार साहित्यिक संवेदना मानवीय करुणा के रूप में इतने बड़े स्तर पर कार्यरत दिखाई दी साथ ही प्रतिदिन की ज़ूम गोष्ठियों, चर्चाओं, साक्षात्कारों और वैश्विक मंचों पर भारतीय लेखकों के साथ प्रवासी लेखकों की भागीदारी ने हिन्दी साहित्य के व्यापक परिवार का दृश्य दिखाया। हिंदी भाषा और साहित्य की चर्चाएँ हर ओर से ऐसे प्रवाहित हुईं और हो रही हैं कि लगता है जैसे हिन्दी साहित्य का एक समवेत वैश्विक गान (कोरस) हो रहा हो।
यह ’कोरस’ जिसे हम प्रवासी साहित्य कहते हैं, इसकी व्यापक संज्ञा के भीतर अब हर राष्ट्र की निजता भी मुखरित हो रही है और उनकी निजी विशेषताएँ भी दिखाई दे रही हैं। उनकी इस ’निजता’ को रेखांकित किए जाने की आवश्यकता भी अनुभव की जा रही है। यह सच है कि हर देश साहित्य की इस यात्रा में अलग-अलग पड़ावों पर है पर यह निश्चित है कि इस यात्रा में सभी समर्पित भाव से चल रहे हैं। साहित्यकुंज में पिछले वर्ष ’फीजी का हिन्दी साहित्य’ विशेषांक प्रकाशन के बाद, यह विशेषांक वैश्विक हिंदी के मानचित्र पर कैनेडा के हिन्दी साहित्य की यात्रा को प्रस्तुत करने की एक चेष्टा है। यह आवश्यक है कि किसी भी देश में हिंदी की स्थिति पर चर्चा करने के लिए पहले उस देश के लेखकों को अधिकाधिक पढ़ा और सुना जाए और उसके बाद ही उसकी विवेचना को बुना जाए। कुछ वर्ष पहले तक हिंदी समाज में विवेचना की विचित्र स्थिति थी, पर्यटन या अंतरराष्ट्रीय समारोहों में भारत से आए लेखक आठ-दस दिन के प्रवास में जो जानकारी एकत्र कर लेते थे, उसी के आधार पर उस देश के हिंदी साहित्य के बारे में लेख लिख दिया करते थे। आप सोच ही सकते हैं कि इन लेखों को उस देश के लेखक जब पढ़ते होंगे तब उन पर क्या बीतती होगी। अच्छी बात यह है कि धीरे-धीरे तकनीकी के विकास से अब हर देश अपने साहित्य को वैश्विक पटल पर लाने का प्रयास कर रहा है।
कोरोना काल में कैनेडा के अनेक लेखक ज़ूम और फ़ेसबुक के पटल पर सक्रिय हुए और हिन्दी के वैश्विक परिवार ने उनका संज्ञान लिया। कैनेडा के लेखक एक लंबे समय से लिख रहे थे, छप रहे थे और यहाँ से पत्रिकाएँ भी निकाल रहे थे। ’हिंदी चेतना’ दो दशक से ऊपर और ’साहित्यकुंज.नेट’ पिछले १९ वर्षों से निकलने वाली ऐसी ही पत्रिकाएँ हैं। लगभग १९८० से यहाँ से समय-समय पर कुछ काव्य संकलन श्रीनाथ द्विवेदी जी और भारतेंदु श्रीवास्तव जी के प्रयास से प्रकाशित हुए। पिछले वर्ष हमने कैनेडा के ४१ लेखकों के पद्य संकलन (सपनों का आकाश) और २१ लेखकों के गद्य संकलन (संभावनाओं की धरती) का पुस्तकबाज़ार.कॉम से ई-पुस्तक रूप में प्रकाशन किया। हिंदी जगत में बहुत उत्साह से उनका स्वागत हुआ और अभी कुछ समय पूर्व ही ये संकलन केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के माध्यम से पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित होकर दुनिया के हाथ में पहुँचे हैं। इन दो संकलनों में लगभग पचास लेखकों की रचनाएँ कैनेडा के हिंदी साहित्य के विकसित होते फलक का परिचायक है। इस विशेषांक को इसी विस्तृत फलक की एक आवश्यकता मान कर, आपको कैनेडा में हिंदी के विकास की यात्रा दिखाने का प्रयास किया गया है। विजय विक्रांत जी का आलेख ’क्या ख़ूब ज़माना यह, एक वो भी ज़माना था’ कैनेडा की ६०वर्ष पहले से अब तक की यात्रा करवाने वाला ऐसा ही आलेख है। २०१६ में लिखे मेरे आलेख ’कैनेडा में हिंदी’ और डॉ. दीपक पांडे के अभी के लिखे आलेख ’कैनेडा में हिंदी शिक्षण परंपरा में स्थानीय संस्थाओं की भूमिका’ और ’कैनेडा के हिंदी साहित्य में योगदान देने वाले साहित्यकार’ से आपको कैनेडा में हिंदी के बारे में बहुत कुछ जानकारी मिलेगी। कैनेडा के अनेक लेखक साहित्यकुंज में लंबे समय से छपते रहे हैं। कुछ लेखक इस विशेषांक में सहभागिता नहीं दे सके हैं, उनके साहित्य के लिंक हम इस विशेषांक में दे रहे हैं ताकि आप उन्हें भी पढ़ सकें, साथ ही जो लेखक इस विशेषांक में प्रकाशित हो रहे हैं, साहित्यकुंज में ही उनकी और अधिक रचनाएँ पढ़ने के लिए आप उनके नाम पर क्लिक करियेगा।
किसी भी लेखन का विवेचन उसके सामर्थ्य और समृद्धि के आकलन में मदद करता है। इस विशेषांक में कैनेडा के लेखकों के साथ ही कैनेडा से बाहर रहने वाले चिंतकों, समालोचकों और विद्वानों के कैनेडा केंद्रित लेखों, साक्षात्कारों और विवेचनों को भी लिया गया है। ये विवेचन और लेख हमारे वर्तमान साहित्य का विश्लेषण करने के साथ ही हमारे भविष्य के मार्गदर्शक भी बनेंगे। इस संदर्भ में श्री अनिल जोशी, उपाध्यक्ष, केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार ने हमारे दोनों संकलनों की जो विवेचनात्मक भूमिकाएँ लिखी हैं, वे कैनेडा के लेखन को समझने के लिए बहुत मदद करेगी। हम वे भूमिकाएँ इस विशेषांक में प्रकाशित कर रहे हैं। इसी तरह डॉ. दीपक पांडे और डॉ. नूतन पांडे ने कैनेडा के कुछ साहित्यकारों के साक्षात्कार लिए थे जो प्रकाशित किए जा रहे हैं। लंदन, यू.के. से अरुणा अजितसरिया जी ने गद्य संकलन की कुछ कहानियों की समीक्षा की है, भारत से भी कुछ समीक्षाएँ और लेख प्राप्त हुए हैं जो कैनेडा के कुछ लेखकों के साहित्य की मीमांसा करते हैं। इस विशेषांक के लिए अपनी रचनाएँ और लेख भेजने के लिए कैनेडा और कैनेडा के बाहर के सभी लेखकों का हार्दिक आभार। ई-पत्रिका होने के कारण हमें यह सुविधा है कि प्रकाशन के बाद भी इस अंक में रचनाएँ, ऑडियो और वीडियो जोड़े जा सकते हैं अत: अगर आप कैनेडा के हिंदी लेखन या लेखक पर कोई सामग्री देना चाहते हैं तो आपका स्वागत है।
यह विशेषांक अनेक कारणों से कुछ देरी से प्रकाशित हो पा रहा है, इसके लिए मैं प्रतीक्षारत लेखकों से क्षमा माँगती हूँ। सुमन जी ने विशेषांक प्रकाशन के विचार को सहर्ष स्वीकृति दे दी और इस प्रकाशन के तकनीकी पक्ष के साथ-साथ प्रूफ़ रीडिंग का दायित्व भी बहुत कुछ अपने ऊपर लेकर मेरा काम कम कर दिया। सह-संपादक के रूप में पिछले पचास वर्ष से यहाँ के हिन्दी साहित्य यात्रा की साक्षी और उसमें सक्रिय भूमिका निबाहने वाली वरिष्ठ लेखिका आशा बर्मन जी का साथ मिला, मैं सुमन जी और आशा जी की हार्दिक आभारी हूँ।
आशा है आपको यह विशेषांक पसंद आयेगा। आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
सादर
शैलजा
सह-संपादकीय
मेरा वक्तव्य, आशा बर्मन
अत्यंत हर्ष की बात है कि साहित्यकुंज में एक विशेषांक प्रकाशित होने जा रहा है जिसमें कैनेडा के प्रवासी साहित्य के अनेक साहित्यकारों की रचनाएँ अनेक विधाओं में एकसाथ उपलब्ध हैं। इस ऐतिहासिक योजना के अंतर्गत पिछले कुछ महीनों से मैं युक्त हूँ और इस सम्बन्ध में कुछ भी कहने से पहले मैं यह बताना चाहूँगी कि यह सब आरंभ कैसे हुआ।
पिछले वर्ष कैनेडा के रचनाकारों के दो ई-संकलनों का प्रकाशन हुआ, गद्य पुस्तक का नाम है: ‘संभावनाओं की धरती’ और कविता संग्रह का नाम है: ‘सपनों का आकाश’। इनका लोकार्पण ’विश्वरंग, नवंबर २०२०’ में और १६ जनवरी २०२१ में तत्कालीन शिक्षा मंत्री, यशस्वी साहित्यकार श्री रमेश पोखरियाल ’निशंक’ जी द्वारा हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा के मंच पर हुआ। ‘विश्वरंग’ के आयोजकों ने भी इस कार्य को साधुवाद दिया क्योंकि इसके कारण कैनेडा के अधिकतर रचनाकारों की सभी विधाओं की रचनाएँ एक साथ एकत्रित हो गई थीं। इसके बाद हिंदी राइटर्स गिल्ड की सह संस्थापक डॉक्टर शैलजा सक्सेना ने कैनेडा के रचनाकारों को लेकर एक विशेषांक निकालने की परिकल्पना की। यह उनकी दूरदर्शिता ही कही जाएगी क्योंकि भविष्य में विश्व में कोई भी व्यक्ति यदि कैनेडा के प्रवासी साहित्य के बारे में विस्तार से जानना चाहेगा तो एक ही स्थान पर उसे सारी सामग्री प्राप्त हो सकती है। मैं अपना सौभाग्य समझती हूँ कि डॉक्टर शैलजा सक्सेना ने साहित्य के इस ऐतिहासिक कार्य में मुझे उप-संपादक बनाया इसके लिए हृदय से उनको धन्यवाद।
मैं पिछले लगभग 49 वर्षों से कैनेडा में हूँ और 40 वर्षों से यहाँ की हिंदी की विभिन्न संस्थाओं से जुड़कर यथासंभव हिंदी के प्रचार प्रसार में सहयोग देने का प्रयास करती रही हूँ। सातवें दशक में हिंदी भाषी यहाँ पर अधिक नहीं थे। इस दशक के उत्तरार्ध में स्कूल में हेरिटेज लैंग्वेज की कक्षाओं में भारत की विभिन्न भाषाओं को पढ़ाया जाने लगा था। उन दिनों मैंने भी कुछ वर्ष बच्चों को स्कूल में हिंदी पढ़ाई थी। आठवें दशक में यहाँ के स्थानीय कवि सम्मेलन में मेरा परिचय उस समय के जाने-माने कवियों से हुआ और मैं उनकी मासिक गोष्ठी में जाने लगी, इस कारण मेरी लेखनी एक बार पुनः सक्रिय हो गई।
मैं यहाँ दो व्यक्तियों का नाम रेखांकित करना चाहूँगी। एक थे डॉक्टर शिवनंदन यादव जिनके नेतृत्व में मासिक गोष्ठियाँ हुआ करती थीं। वे नवोदित रचनाकारों को बहुत उत्साह और प्रोत्साहन देते थे। इन रचनाकारों में मेरे अलावा और भी कई नाम थे, श्रीमती अचला दीप्ति कुमार, श्रीमती शैल शर्मा, श्रीमती स्नेह सिंघवी इत्यादि। दूसरे जिन विद्वान का नाम मैं लेना चाहूँगी वे थे प्रोफ़ेसर हरिशंकर आदेश जी, जिन्होंने हिंदी की 300 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं और टोरोंटो में उनका एक विद्या संस्थान था जिसमें प्रत्येक वर्ष वे कवि सम्मेलन तथा अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते थे और जिसमें सभी कवियों को और भी अधिक लिखने की प्रेरणा देते थे। वे स्वयं जब अपनी ओज भरी वाणी में अपनी सुंदर छंदमयी कविताएँ गाकर पढ़ते थे तो सभी लोग मुग्ध होकर सुनते थे।
पिछले 40 वर्षों में हिंदी परिषद और हिंदी साहित्य सभा ने टोरोंटो में हिंदी की एक सुदृढ़ नींव स्थापित की थी। इसके पश्चात् 2008 में हिंदी राइटर्स गिल्ड बनी जिससे यहाँ के हिंदी के प्रचार प्रसार का स्तर और भी ऊँचा हो गया क्योंकि अब हिंदी प्रेमी न केवल कविताएँ लिखते, साहित्य की अन्य विधाओं में भी वे लिखने लगे थे जैसे लघु कथा, संस्मरण, यात्रा विवरण, हाइकु इत्यादि। हिंदी साहित्य से सम्बन्धित कई कार्यशालायें की गईं ताकि यहाँ के रचनाकारों को और भी अच्छा लिखने तथा प्रस्तुतीकरण करने का ज्ञान तथा अवसर मिले। तो इस इस प्रकार हम देखते हैं कि कैनेडा में न केवल रचनाकारों की संख्या बढ़ रही है वरन् उनका स्तर भी पहले से अधिक अच्छा हो रहा है। मैं यह भी कहना चाहूँगी कि हिंदी राइटर्स गिल्ड ने नई पीढ़ी को हिंदी सीखने के लिए बहुत प्रोत्साहित किया, इससे पहले इस प्रकार का प्रयास किसी ने भी नहीं किया था।
इसके साथ ही हिंदी राइटर्स गिल्ड के दूसरे सह संस्थापक श्री सुमन कुमार घई की ई-पत्रिका ’साहित्यकुंज’ में ये रचनाकार बराबर अपनी रचनाएँ प्रकाशित करवा रहे हैं, और साथ ही इनमें से कई की पुस्तकें इसी संस्था के द्वारा प्रकाशित भी की गयीं। अब तक हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा ने 14 पुस्तकें प्रकाशित की हैं। सारांश यह है, कि पिछले 40 वर्षों में कैनेडा का प्रवासी साहित्य अपनी कई विधाओं के साथ निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। पिछले वर्ष जो पुस्तकें प्रकाशित हुई थी और अब जो यह विशेषांक साहित्य कुंज में प्रकाशित होगा यह एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्य है। इस ऐतिहासिक कार्य के यज्ञ में मैं भी आहुति दे सकी इसकी मुझे बहुत प्रसन्नता है। इस योजना में भाग लेकर मैंने भी बहुत कुछ सीखा है। जैसे ओटवा के डॉक्टर हूमर जी के लेख को पढ़कर मैंने पहली बार यह जाना कि ओटावा में प्रवासी हिंदी साहित्य का इतिहास कैसा रहा है, यह जानना मेरे लिए रोचक तथा ज्ञानवर्धक था। इसी प्रकार इस विशेषांक के लिए कुछ नए हिंदी के लेखक हमारे साथ जुड़े जैसे सीमा बागला, आयुषी पुरोहित इत्यादि। इस योजना से जुड़कर मैं कुछ सीख सकी इसका भी मुझे संतोष है।
शैलजा जी की परिकल्पना को, उनके प्रयास को, सबको साथ ले चल लेकर चलने की उनकी सद्भावना को मैं साधुवाद देना चाहती हूँ। मैं आभारी हूँ कि मुझे इस कार्य में योग देने का अवसर मिला।
यह विशेषांक यहीं पर समाप्त नहीं हो जाता। आशा है, भविष्य में और भी रचनाएँ और लेख इसमें जुड़ेंगे। कोई भी योगदान देना चाहे तो आप अवश्य हमारे संपर्क में रहें, धन्यवाद।
हिंदी साहित्य विशेषांक,
उपसंपादक, आशा बर्मन