कामकाजी पति की व्यथा 

01-07-2025

कामकाजी पति की व्यथा 

महेश कुमार केशरी  (अंक: 280, जुलाई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

जब से मेरे ऑफ़िस में नई टीन एज 
बाॅस आई हैं . . . तब से पत्नी जी पर 
शक करने की बीमारी छाई है। 
बात बेबात पूछती रहती हैं 
ऑफ़िस सुबह-सुबह 
बड़ी जल्दी चले जाते हो 
रात को भी देखती हूँ 
बहुत लेट आते हो . . .
कहीं तुम्हारा किसी से चक्कर तो
नहीं चल रहा है? 
 
मैं पत्नी जी को समझाता हूँ— 
मार्च का महीना है क्लोज़िंग  चल रहा है, 
प्रिये काम करते करते थका जा  रहा हूँ। 
थक-थककर मरा जा रहा हूँ 
और तुम्हें शक करने की पड़ी है 
 
पत्नी जी बोलीं मेरे पास भी घड़ी है 
समय से दफ़्तर जाओ और 
समय से घर वापस आओ 
ज़्यादा पेंच मत लड़ाओ 
ज़्यादा ओवर टाइम करने की तुम्हें क्यों पड़ी हो 
जब खाना दो रोटी और बड़ी है . . .
 
आजकल बहुत टिफ़िन लौटा रहे हो 
कहाँ नैन-से-नैन लड़ा रहे हो 
अपनी काया को चमका रहे हो 
कहीं कोई और बात तो नहीं है 
जो तुम मुझे बरगला रहे हो 
 
मैंने पत्नी जी को समझाया 
आजकल मैं डाईट पर चल रहा हूँ 
केवल फल और फल के रस ले रहा हूँ 
बाॅडी ख़राब होती जा रही है . . .
लिहाज़ा ज़रूरी है डाईट 
 
ज़्यादा मत करो डाईट 
नहीं तो मैं तुम पर कर दूँगी फाईट 
हो जायेगी तुम्हारी हालत टाईट 
दूँ, क्या तुम्हें एक घूँसे की बाइट 
 
बूढ़ापे में डाईट का नहीं है कोई मतलब, 
मैं समझ रही हूँ किससे करनी है मुझे फाईट 
तुम दुबले बनकर 
अपनी बाॅस को रिझाने में लगे हो . . .
वैसे तो हँस हँस कर उससे बतियाते हो 
मुझे देखते ही चुप हो जाते हो। 
 
आजकल तुम बहुत चहकने लगे हो। 
डर इस बात का है कि 
कहीं बाहर बहकने लगे हो
बहकने की सोचना भी मत नहीं 
तो कर दूँगी तुम्हारी हालत पस्त। 
 
सबसे हँस-हँसकर बातें करते रहते हो 
हरदम इत्र लगाकर महकते नज़र आते हो 
कहीं कुछ पका तो नहीं रहे हो . . .
बालों में हफ़्ते से ख़िज़ाब लगा रहे हो 
रोज़ दाढ़ी मूँछें बना रहे हो 
कहीं तुम मुझे उल्लू तो नहीं बना रहे हो? 
 
देख रही हूँ आजकल ख़ूब जवानी फूट रही है
बूढापा आने को है और 
उतरा रहे हो रोज़-रोज़ नई शर्ट 
आँखों पर सन ग्लास भी लगा रहे हो 
कहीं तुम मुझे बना तो नहीं रहे हो 
 
करने लगे हो बुढ़ापे में योगा 
जान लो अब तुमसे कुछ नहीं होगा 
आँखों में काजल फिराने लगे हो
क्या उस पतरकी को रिझाने लगे हो?

ज़्यादा तुम उड़ो मत 
नहीं तो कुतर दूँगी तुम्हारे पर 
ना तीन में रहोगे ना तेरह में रहने दूँगी 
ना कुछ कहोगे . . . ना कहने लायक़ रहने दूँगी! 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता
कहानी
लघुकथा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में