भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

25. अपनी नौका खेव रहे हैं

 

यह मानने या न मानने की बात नहीं
अपने आप ही तय करना है
तुलना किसी से क्या है करनी
हो सवार नैया में अपनी
केवट बनकर खेव रहे हैं
लहरें हैं हिचकोले खाती
है मगर विश्वास अटूट
उस एक पर जो तेरा मेरा रखवाला है
आज, अभी, आने वाले कल में भी
ओद अनंत तक वही एक निराधार का आधार
उसको शत शत प्रणाम। 

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