भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

28. तनाव

 

तनाव का होना शायद
इन्सानी फ़ितरत बन गई है
इतना तनाव भी किस काम का? 
जब काम कर रही है क़ुदरत अपना
बदल रही है वही बहुत कुछ
बिन बोले बिन जताय
वही जो हम तुम कर नहीं पाए
फिर भी तनाव फ़ितरतन लाज़िमी हो जाता है
जब हम उसे समझने की
और ख़ुद को समझाने की
तौफ़ीक़ नहीं हैं रखते। 

<< पीछे : 27. बहाव निरंतर जारी है आगे : 29. यह दर्द भी अजीब शै है >>

लेखक की कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
ग़ज़ल
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो