भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

40. मेरी जवाबदारी

 

मेरी सेहत मेरी जवाबदारी है
जानती हूँ बीमारी से बचना, 
ख़ुद को बचाए रखना मेरी जवाबदारी है
फिर भी यह मन क्यों मचलता है
जब कोई अपना बीमार पड़ता है
जब अपना कोई नज़र से दूर रहता है
धरी की धरी रह जाती है मेरी तथाकथित जवाबदारी
अपनी ही सोच की महफ़ूजियत की क़ैद में
बैठी रहती हूँ दूर दूर
बहुत दूर मेरे अपनों से, जो
करोना के चंगुल में क़ैद हैं
क्वारंटीन के क़िले में बंद हैं
बस दूर से ही, अपने मास्क को ठीक करते हुए
उड़ती निगाह से उस ओर देखे लेती हूँ
शायद संकट ने सिखा दिया है
स्वार्थ में ही जीना है
स्वार्थ में ही पाना है
स्वार्थ में ही खोना है
हर उस जवाबदारी से मुक्त पहले कभी न थी
शायद अब यही मेरी जवाबदारी है
ख़ुद को बचाना, बचाव का साधन अपनाना
यह सिर्फ़ मेरी नहीं
इस संकट काल में
हर आदम की जवाबदारी है। 

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