प्लास्टिक का प्रहार

01-07-2025

प्लास्टिक का प्रहार

पवन कुमार ‘मारुत’ (अंक: 280, जुलाई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)


(देव घनाक्षरी छन्द)

 

सोचूँ सोच-सोचकर संसार समन्दर में, 
मानुष मगर मारे मछली मोटी-महीन। 
स्वार्थी सताता सारे सीधे-सादे सहचरों को, 
समझता स्वयं को ज़ालिम जहान ज़हीन। 
पापी परवाह नहीं नेकु जीव-जन्तुओं की, 
पटकते पन्नी प्लास्टिक की खुले में महीन। 
भूखे भोले जीव जमाने का सितम सहते, 
“मारुत” मारता मौत से पूर्व प्लास्टिक महीन॥

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