भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

6. एक दिन की दिनचर्या

 

यही तो लिखा था
सम्पादक महोदय ने . . . 
कुछ अपनी जीवनचर्या के बारे में लिख भेजिए
सोच में पड़ गयी, क्या लिखूँ क्या न लिखूँ
क़लम काग़ज़ ले बैठी सोच की सेज पर
कहाँ से शुरू करूँ, क्या लिखूँ
ऐसा क्या नया है जिस पर कुछ लिखा जाय
या, वही जो सभी लिखते हैं
उसमें से हर एक एक का कुछ
जो मैं हर रोज़ पढ़ती हूँ
कभी स्मरण तो कभी संस्मरण
कभी कोई शेर, तो कभी पूरी ग़ज़ल
और तो और सोच रही हूँ
बताऊँ या न बताऊँ
पर रहा नहीं जाता
फिर भी जो सच है वही लिख रही हूँ
यही सोच रही हूँ, कि इसमें क्या ख़ास बात है
कौन सी नई बात है
जो और करते हैं, और मैं नहीं करती
या वो बात, जो और न करते हों, और मैं करती हूँ
हाँ यही ठीक है और सही भी है
वैसे भी, नक़ल करने में क्या मज़ा है
मज़ा तो उसमें है
जो असल हो, अर्थपूर्ण हो और पठनीय हो
अब यह तो पाठक ही बता सकते हैं
तो लीेजिये, पढ़िएगा और प्रतिक्रिया लिखिएगा
तब तक मैं सोचती हूँ
क्या लिखूँ क्या न लिखूँ? 

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