भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

2. तुम स्वामी मैं दासी

 

सूर्य मेरे जीवन के तुम
मैं हूँ मात्र एक किरण
जाने कब से बिछड़ी तुमसे
मिलने को आतुर हूँ तब से
मैं अज्ञानी हूँ मंदबुद्धि
तुम हो अंतरयामी स्वामी
कर किरपा अब आन मिलो तुम
अपनाकर कुछ ऐसे जैसे
तुम ‘मैं’ हो जाओ आप स्वामी
मैं ‘तुम’ हो जाऊँ दासी। 

<< पीछे : 1. सच मानिए वही कविता है आगे : 3. सुप्रभात >>

लेखक की कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
ग़ज़ल
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो