चंद्र ग्रहण

01-07-2025

चंद्र ग्रहण

प्रभुदयाल श्रीवास्तव (अंक: 280, जुलाई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

बहुत दिनों से सोच रहा हूँ, 
मन में कब से लगी लगन है। 
आज बताओ हमें पिताजी, 
कैसे होता सूर्य ग्रहण है। 
 
कहा पिताजी ने प्रिय बेटे, 
तुम्हें पड़ेगा पता लगाना। 
तुम्हें ढूँढ़ना है सूरज के, 
सभी ग्रहों का ठौर ठिकाना। 
 
ऊपर देखो नील गगन में, 
हैं सारे ग्रह दौड़ लगाते। 
बिना रुके सूरज के चक्कर‌
अविरल निश दिन सदा लगाते। 
 
इसी नियम से बँधी धरा है, 
सूरज के चक्कर करती है। 
अपने उपग्रह चंद्रदेव को, 
साथ लिये घूमा करती है। 
 
चंद्रदेव भी धरती माँ के, 
लगातार घेरे करते हैं। 
धरती अपने पथ चलती है, 
वे भी साथ‌ चला करते हैं। 
 
कभी कभी चंदा सूरज के, 
बीच कहीं धरती आ जाती। 
धरती की छाया के कारण, 
धूप चाँद तक पहुँच न पाती। 
 
इसी अवस्था में चंदा पर, 
अंधकार सा छा जाता है। 
समझो बेटे इसे ठीक से, 
चंद्र ग्रहण यह कहलाता है। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

किशोर साहित्य कविता
आत्मकथा
किशोर साहित्य नाटक
बाल साहित्य कविता
बाल साहित्य कहानी
किशोर साहित्य कहानी
बाल साहित्य नाटक
कविता
लघुकथा
आप-बीती
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में