भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

33. उम्मीद बरस रही है

 

उम्मीदें वाक़ई बरस रही हैं
आसमान से नमतें बनकर
शायद इसीेलए
कहीं भूकम्प
कहीं सूखा
कहीं सुनामी
कहीं भूख
कहीं लूट
सब कुछ आसपास ही तांडव कर रहा है
दर्शक बन कर देखे रहे हम
मूक तमाशाइयों की तरह
पर कुछ कर सकने की क्षमता को
अपने भीतर हो कहीं दफ़नाकर
मुँह उठाए चल रहे हैं
अपनी नज़रों में आदर्श बनकर
चाल अपनी चल रहे हैं
फिर भी
कर रहा है वही
जो एक ही है हमारा पिता
नेमतों की बारिश
आसमानी उजालों की रोशनी से
दे रहा है धैर्य, बँधा रहा है उम्मीद
इस संकट काल में भी
कि मैं अपना काम कर रहा हूँ
तुम भी अपना काम कर लो
जिस कारण मनुष्य बन कर
धरती पर आए
माँ के गर्भ को वो सम्मान दो
जिसकी गाथा सिर्फ़ शब्दों में गाते हो
ऐसे चिह्न छोड़ जाओ
कि आने वाली पीढ़ियाँ उन चिह्नों को
मार्गदर्शन का चिह्न मानकर
मानवता को करे प्रणाम
जननी को करे शत प्रणाम। 

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