भीतर से मैं कितनी खाली (रचनाकार - देवी नागरानी)
33. उम्मीद बरस रही है
उम्मीदें वाक़ई बरस रही हैं
आसमान से नमतें बनकर
शायद इसीेलए
कहीं भूकम्प
कहीं सूखा
कहीं सुनामी
कहीं भूख
कहीं लूट
सब कुछ आसपास ही तांडव कर रहा है
दर्शक बन कर देखे रहे हम
मूक तमाशाइयों की तरह
पर कुछ कर सकने की क्षमता को
अपने भीतर हो कहीं दफ़नाकर
मुँह उठाए चल रहे हैं
अपनी नज़रों में आदर्श बनकर
चाल अपनी चल रहे हैं
फिर भी
कर रहा है वही
जो एक ही है हमारा पिता
नेमतों की बारिश
आसमानी उजालों की रोशनी से
दे रहा है धैर्य, बँधा रहा है उम्मीद
इस संकट काल में भी
कि मैं अपना काम कर रहा हूँ
तुम भी अपना काम कर लो
जिस कारण मनुष्य बन कर
धरती पर आए
माँ के गर्भ को वो सम्मान दो
जिसकी गाथा सिर्फ़ शब्दों में गाते हो
ऐसे चिह्न छोड़ जाओ
कि आने वाली पीढ़ियाँ उन चिह्नों को
मार्गदर्शन का चिह्न मानकर
मानवता को करे प्रणाम
जननी को करे शत प्रणाम।
विषय सूची
- प्रस्तावना – राजेश रघुवंशी
- भूमिका
- बहुआयामी व्यक्तित्व की व्यासंगी साहित्यिकारा देवी नागरानी
- कुछ तो कहूँ . . .
- मेरी बात
- 1. सच मानिए वही कविता है
- 2. तुम स्वामी मैं दासी
- 3. सुप्रभात
- 4. प्रलय काल है पुकार रहा
- 5. भीतर से मैं कितनी ख़ाली
- 6. एक दिन की दिनचर्या
- 7. उम्मीद नहीं छोड़ी है
- 8. मैं मौत के घाट उतारी गई हूँ
- 9. क्या करें?
- 10. समय का संकट
- 11. उल्लास के पल
- 12. रैन कहाँ जो सोवत है
- 13. पाती भारत माँ के नाम
- 14. सुख दुख की लोरी
- 15. नियति
- 16. वे घर नहीं घराने हैं
- 17. यादों में वो बातें
- 18. मन की गाँठें
- 19. रेंग रहे हैं
- 20. मुबारक साल 2021
- 21. जोश
- 22. इल्म और तकनीक
- 23. शर्म और सज्दा
- 24. लम्स
- 25. अपनी नौका खेव रहे हैं
- 26. नया साल
- 27. बहाव निरंतर जारी है
- 28. तनाव
- 29. यह दर्द भी अजीब शै है
- 30. रात का मौन
- 31. रावण जल रहा
- 32. लौट चलो घर अपने
- 33. उम्मीद बरस रही है
- 34. क़ुदरत परोस रही
- 35. रेत
- 36. मेरी यादों का सागर
- 37. मन का उजाला
- 38. लड़ाई लड़नी है फिर से
- 39. सिहर रहा है वुजूद
- 40. मेरी जवाबदारी
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- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
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- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
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- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
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