भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

23. शर्म और सज्दा

 

जब झुक जाता है
शर्म से मेरा ग़ुरूर
तब आँखें झुका लेती हूँ मैं
और
गुमान होता है देखेने वालों को
कि
मैंने सजदे में सर झुकाया है। 

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