सौतन
पवन कुमार ‘मारुत’
(मनहरण कवित्त छन्द)
सपत्नी स्नेह संग सजाती सेज साजन की,
कड़वे कथनों की संगीन से सताती है।
सराबोर सितम सरोवर से स्वयं करे,
प्रति पल पीड़ा प्राण पातक लगाती है।
अकेलापन अजीब उतावली उदासी से,
सखी सौतन शोक समन्दर सुलाती है।
नुकीले नश्तर समान शब्द-सेल सालते,
सौत वासर-विभावरी रोज़ रुलाती है॥