भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

31. रावण जल रहा

 

आज भी अपनी सोच की चिता पर
सर झुकाए अपनी कायरता पर
सोच रही हूँ
सदियों पहले लंका में रहते
सीता इस दुर्व्यवहार से नावाक़िफ़ रही
जैस लिखा गया है—
सदियों पहले आज के दिन, 
रावण को राम ने मारा था। 
आज सैंकड़ों रावण खड़े हैं, 
राम का कहीं कोई पता नहीं
यही सच है इस सदी का
सच तो यह भी है
आज की सीता को अपनी सुरक्षा के लिए
ख़ुद कोई ठोस क़दम उठाना पड़ेगा
किसी राम का इंतज़ार करने से पहले
दस रावण प्रत्यक्ष आ जाते हैं
युद्ध आज भी है
एक का अनेक के साथ
शायद यह आख़री युग है
कोई नया संकेत दे रही है
नारी शक्ति की चेतना
सँभलने का मौक़ा प्रदान कर रही है प्रकृति
नियम तो पालन होना है
चाहे आज की सीता करे
या प्रकृति। 

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