भीतर से मैं कितनी खाली (रचनाकार - देवी नागरानी)
31. रावण जल रहा
आज भी अपनी सोच की चिता पर
सर झुकाए अपनी कायरता पर
सोच रही हूँ
सदियों पहले लंका में रहते
सीता इस दुर्व्यवहार से नावाक़िफ़ रही
जैस लिखा गया है—
सदियों पहले आज के दिन,
रावण को राम ने मारा था।
आज सैंकड़ों रावण खड़े हैं,
राम का कहीं कोई पता नहीं
यही सच है इस सदी का
सच तो यह भी है
आज की सीता को अपनी सुरक्षा के लिए
ख़ुद कोई ठोस क़दम उठाना पड़ेगा
किसी राम का इंतज़ार करने से पहले
दस रावण प्रत्यक्ष आ जाते हैं
युद्ध आज भी है
एक का अनेक के साथ
शायद यह आख़री युग है
कोई नया संकेत दे रही है
नारी शक्ति की चेतना
सँभलने का मौक़ा प्रदान कर रही है प्रकृति
नियम तो पालन होना है
चाहे आज की सीता करे
या प्रकृति।
विषय सूची
- प्रस्तावना – राजेश रघुवंशी
- भूमिका
- बहुआयामी व्यक्तित्व की व्यासंगी साहित्यिकारा देवी नागरानी
- कुछ तो कहूँ . . .
- मेरी बात
- 1. सच मानिए वही कविता है
- 2. तुम स्वामी मैं दासी
- 3. सुप्रभात
- 4. प्रलय काल है पुकार रहा
- 5. भीतर से मैं कितनी ख़ाली
- 6. एक दिन की दिनचर्या
- 7. उम्मीद नहीं छोड़ी है
- 8. मैं मौत के घाट उतारी गई हूँ
- 9. क्या करें?
- 10. समय का संकट
- 11. उल्लास के पल
- 12. रैन कहाँ जो सोवत है
- 13. पाती भारत माँ के नाम
- 14. सुख दुख की लोरी
- 15. नियति
- 16. वे घर नहीं घराने हैं
- 17. यादों में वो बातें
- 18. मन की गाँठें
- 19. रेंग रहे हैं
- 20. मुबारक साल 2021
- 21. जोश
- 22. इल्म और तकनीक
- 23. शर्म और सज्दा
- 24. लम्स
- 25. अपनी नौका खेव रहे हैं
- 26. नया साल
- 27. बहाव निरंतर जारी है
- 28. तनाव
- 29. यह दर्द भी अजीब शै है
- 30. रात का मौन
- 31. रावण जल रहा
- 32. लौट चलो घर अपने
- 33. उम्मीद बरस रही है
- 34. क़ुदरत परोस रही
- 35. रेत
- 36. मेरी यादों का सागर
- 37. मन का उजाला
- 38. लड़ाई लड़नी है फिर से
- 39. सिहर रहा है वुजूद
- 40. मेरी जवाबदारी
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- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
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- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
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