शहीद बिका नाएक की खोज दिनेश माली

 

‘शहीद बिका नायक की खोज’ एक ऐसा उपन्यास है जो अपने अद्वितीय कथ्य और अनूठी शैली के माध्यम से इतिहास, समाज और मानवीय संवेदनाओं के विभिन्न आयामों का अन्वेषण करता है। लेखक ने इस उपन्यास के माध्यम से न केवल तालचेर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को सजीव किया है, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों के संघर्ष और बलिदान को भी उजागर किया है।

तालचेर, जो अपने कोयला खदानों, उद्योगों और पर्यावरणीय जटिलताओं के लिए प्रसिद्ध है, लेखक की दृष्टि में मात्र एक भूगोल नहीं, बल्कि जीवंत समाज और इतिहास का एक प्रतीक है। इस पृष्ठभूमि में, बिका नायक जैसे शहीदों की गाथा लिखना एक महत्त्वपूर्ण दायित्व है, जिसे लेखक ने विक्रम-वेताल की शैली में प्रस्तुत कर इसे रोचक और प्रासंगिक बना दिया है। उपन्यास में कल्पना और इतिहास का अद्भुत सामंजस्य दिखाई देता है, जो पाठकों को एक नई दृष्टि प्रदान करता है।

उपन्यास का कथानक, 1893 से 2024 तक के इतिहास को समेटे हुए, भारतीय समाज के दलित और शोषित वर्गों के संघर्ष को प्रतिबिंबित करता है। लेखक ने मार्मिकता के साथ इस बात को रेखांकित किया है कि स्वतंत्रता आंदोलन में निचले वर्ग के लोगों ने किस प्रकार त्याग और बलिदान किया, लेकिन आज भी उनके साथ न्याय नहीं हुआ है। यह प्रश्न पाठकों के मन में गहराई से उभरता है और उन्हें आत्ममंथन के लिए प्रेरित करता है।

महिमा स्वामी और संत कवि भीम भोई के सामाजिक योगदान को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, लेखक ने ओडिशा की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को बड़े ही संवेदनशील तरीके से उभारा है। इसके साथ ही, विक्रम और वेताल के संवादों के माध्यम से आधुनिक समय की सामाजिक विसंगतियों पर भी गहराई से विचार किया गया है।

लेखक ने गहन शोध और समर्पण के साथ इस उपन्यास को आकार दिया है। विभिन्न ऐतिहासिक दस्तावेज़ों, लेखों, और स्वतंत्रता संग्रामियों के परिजनों से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर यह उपन्यास न केवल एक साहित्यिक कृति है, बल्कि इतिहास का महत्वपूर्ण दस्तावेज भी है।

यह उपन्यास हमें बिका नायक और उनके जैसे अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए प्रेरित करता है। लेखक का यह प्रयास, कि उनके बलिदान को न केवल स्मरण किया जाए, बल्कि उनके आदर्शों को आत्मसात किया जाए, सराहनीय है।

‘शहीद बिका नायक की खोज’ केवल एक उपन्यास नहीं है, यह एक संवेदनशील लेखक के हृदय की गहराइयों से उपजा हुआ एक ऐसा प्रयास है, जो हमारे राष्ट्रीय इतिहास और समाज के प्रति हमारी ज़िम्मेदारियों को जागृत करता है। इस प्रेरणादायी कृति के लिए लेखक को हार्दिक शुभकामनाएँ।

शालीन कुमार सिंह
एसोसिएट प्रोफेसर, अंग्रेज़ी विभाग

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