भीतर से मैं कितनी खाली (रचनाकार - देवी नागरानी)
11. उल्लास के पल
मत करो कोशिश
पकड़ने की, जकड़ने की
न बाँध पाओगे
न क़ैद कर पाओगे
यह तो अहसास की मस्ती है
जो जीवन को संचारित करती है
धड़कनों की थाप पर
रक़्स करती हुई थिरकती है
कभी मदिरा की मस्ती में
हँसती हुई छलकती है
कभी लबों को बिन छुए
सहराई प्यास सी तरसती है
यह तो संगीत की झनकार है
जो हृदय के ताल पर नाचती है
उल्लास की वह हस्ती है
बस जिस पल यह अहसास महसूस हो
जान जाओगे यह वही पल है
जो तुम जीना चाहते आप
यही तो उल्लास है
जिसे तुम बाँहों में भरना चाहते हो
पर नहीं कर पाओगे
बस साँसों में भर लो इसे
महसूस करो इसे अपने भीतर
यह उस क्षण का आनंद है
क्षण भंगुर भी है
जो स्थायी भी है।
विषय सूची
- प्रस्तावना – राजेश रघुवंशी
- भूमिका
- बहुआयामी व्यक्तित्व की व्यासंगी साहित्यिकारा देवी नागरानी
- कुछ तो कहूँ . . .
- मेरी बात
- 1. सच मानिए वही कविता है
- 2. तुम स्वामी मैं दासी
- 3. सुप्रभात
- 4. प्रलय काल है पुकार रहा
- 5. भीतर से मैं कितनी ख़ाली
- 6. एक दिन की दिनचर्या
- 7. उम्मीद नहीं छोड़ी है
- 8. मैं मौत के घाट उतारी गई हूँ
- 9. क्या करें?
- 10. समय का संकट
- 11. उल्लास के पल
- 12. रैन कहाँ जो सोवत है
- 13. पाती भारत माँ के नाम
- 14. सुख दुख की लोरी
- 15. नियति
- 16. वे घर नहीं घराने हैं
- 17. यादों में वो बातें
- 18. मन की गाँठें
- 19. रेंग रहे हैं
- 20. मुबारक साल 2021
लेखक की कृतियाँ
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- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
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- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
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