भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

11. उल्लास के पल

 

मत करो कोशिश
पकड़ने की, जकड़ने की
न बाँध पाओगे
न क़ैद कर पाओगे
यह तो अहसास की मस्ती है
जो जीवन को संचारित करती है
धड़कनों की थाप पर
रक़्स करती हुई थिरकती है
कभी मदिरा की मस्ती में
हँसती हुई छलकती है
कभी लबों को बिन छुए
सहराई प्यास सी तरसती है
यह तो संगीत की झनकार है
जो हृदय के ताल पर नाचती है
उल्लास की वह हस्ती है
बस जिस पल यह अहसास महसूस हो
जान जाओगे यह वही पल है
जो तुम जीना चाहते आप
यही तो उल्लास है
जिसे तुम बाँहों में भरना चाहते हो
पर नहीं कर पाओगे
बस साँसों में भर लो इसे 
महसूस करो इसे अपने भीतर
यह उस क्षण का आनंद है
क्षण भंगुर भी है
जो स्थायी भी है। 

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