ईश्वरानंद कविता की समीक्षा
विजय नगरकरकविता: ईश्वरानंद (कविता कोश)
लेखिका: डॉ. पुष्पिता अवस्थी
ईश्वरानंद
मैं तुम्हारे प्रेम का धान्य हूँ
और तुम
हृदय का विश्वास
तुम्हारी स्मृति-कुठले में
संचित उपजाए अन्न की तरह हूँ
अपनी अंतःसलिला में
रूपवान मछली की तरह
तैरने देना चाहते हो मुझे ।
तुम जीना चाहते हो मुझ में
प्रेम का सौंदर्य
और मैं पाना चाहती हूँ
सौंदर्य-सुख!
जीवन का विलक्षण आनन्द—प्रेम
धर्म के लिए ईश्वरानंद है जो ।
~पुष्पिता
यह कविता एक ऐसी गहन आध्यात्मिक अनुभूति को उजागर करती है, जहाँ प्रेम, आस्था, और आत्मा का अद्भुत संलयन प्रतीत होता है। पुष्पिता ने शब्दों के मधुर ताने-बाने से यह संदेश दिया है कि प्रेम न केवल भावनाओं का संगम है, बल्कि यह अन्न के समान, जीवन के पोषण का स्रोत भी है। इसमें “धान्य” की तरह प्रेम को स्वीकार करने की भावनात्मक व्यापकता दिखाई देती है, मानो प्रेम स्वयं एक पवित्र आशीर्वाद हो।
कविता की पहली पंक्ति में प्रेम को “धान्य” के रूप में प्रस्तुत करके यह संकेत मिलता है कि प्रेम की अनुभूति आंतरिक रूप से पोषण देने वाली है – जैसे धान्य जीवन का आधार है। आगे, कवयित्री ने स्मृतियों को कुठले में संचयित उपजाए अन्न के समान चित्रित किया है, जो हमारे भीतर उभरते अनुभवों और भावनाओं को प्रतीकात्मक रूप में समाहित करता है। यह शैली पाठक को निवर्तमान क्षण में वापस ले जाती है, जहाँ हर अनुभूति का अपना महत्व है और हर याद अपने आप में एक अनूठा अनुभव लेकर आती है।
अंत में “अंतःसलिला” और “रूपवान मछली” के रूप में उपमाओं का प्रयोग अद्वितीय है। यहाँ कवयित्री स्वयं की आत्मा को एक ऐसी प्रकृति के रूप में देखती हैं जो प्रेम की धाराओं में मुक्त रूप से तैर रही है। यह चित्रण न केवल प्रेम की प्रवाहशीलता को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि प्रेम में खो जाने का उत्साह कितना सुंदर और जीवन्त हो सकता है। इसे एक तरह से जीवन के विलक्षण आनन्द में परिवर्तित किया गया है, जहाँ प्रेम और धर्म के संगम में ईश्वरानंद की अनुभूति प्रकट होती है।
इस प्रकार, कविता में उपयोग की गई रूपकों और प्रतीकों की मधुर जुगलबंदी इसे एक ललित और रोचक रूप देती है। यह न केवल भावनात्मक गहराई को छूती है, बल्कि पाठक को निमंत्रण देती है कि वह प्रेम की अनंतता में खुद को समाहित कर दे, अपने आप में सौंदर्य-सुख की अनुभूति को पुनः जीवंत करे।
इस कविता में उपमा और प्रतीकों का प्रयोग गहरी संवेदनशीलता और भावनात्मक सघनता को उजागर करने के लिए किया गया है। ये न केवल कविता को ललित शैली प्रदान करते हैं, बल्कि पाठक के मन में एक जीवंत चित्र उकेरते हैं जो प्रेम, आत्मा, और ईश्वरानंद की अनुभूति को सहज रूप से व्यक्त करता है।
1. उपमा का प्रयोग:
“प्रेम का धान्य”—यह उपमा प्रेम को पोषण देने वाले तत्व के रूप में दर्शाती है, जैसे अन्न जीवन का आधार है। यहाँ प्रेम को जीवन के मूलभूत तत्व के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो संपूर्ण अस्तित्व को आधार देता है।
“स्मृति-कुठले में संचित उपजाए अन्न की तरह”—यह उपमा स्मृतियों को अन्न की तरह संग्रहित करने की प्रक्रिया से जोड़ती है, जिससे यह संकेत मिलता है कि हमारी यादें भी हमारे मानसिक पोषण का हिस्सा हैं।
“अंत:सलिला में रूपवान मछली की तरह”—यह उपमा प्रेम को प्रवाहशीलता और सौंदर्य से जोड़ती है। यहाँ प्रेम को जलधारा में मुक्त रूप से तैरती हुई एक सुंदर मछली की तरह देखा गया है, जो उसकी स्वाभाविक सौंदर्यता और जीवन के प्रति उत्साह को दर्शाता है।
2. प्रतीकों का प्रयोग:
अन्न: यहाँ अन्न जीवन, पोषण, और स्थिरता का प्रतीक बनता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि प्रेम केवल एक भावनात्मक अनुभूति नहीं, बल्कि संपूर्ण अस्तित्व की आधारशिला है।
अंत:सलिला (नदी): यह प्रवाह, निरंतरता और आत्मा की गहराई का प्रतीक है। प्रेम की अनुभवात्मक गहराई को नदी के प्रवाह से जोड़कर दर्शाया गया है।
रूपवान मछली: यह सौंदर्य, स्वतंत्रता, और सहजता का प्रतीक है। प्रेम में डूबने की भावना को यहाँ एक सुंदर, स्वतंत्र रूप से प्रवाहमान मछली के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
ईश्वरानंद: यह प्रेम के धार्मिक और आध्यात्मिक पहलू को उजागर करता है, जहाँ प्रेम स्वयं धर्म के लिए परम आनंद का स्रोत बन जाता है।
कुल मिलाकर, कविता में उपमा और प्रतीक न केवल भावनाओं को सजीव बनाते हैं, बल्कि प्रेम की अनुभूति को एक गहरे, विस्तृत, और सौंदर्यपूर्ण परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करते हैं।
इस कविता में कई अन्य साहित्यिक उपकरणों (literary devices) का सुंदर और सघन प्रयोग हुआ है, जो इसकी संवेदनशीलता और सौंदर्यबोध को गहराई देते हैं। आइए प्रमुख साहित्यिक उपकरणों पर चर्चा करें:
1. अनुप्रास (Alliteration)
कवयित्री ने शब्दों की ध्वन्यात्मक पुनरावृत्ति का प्रयोग किया है, जिससे कविता का लालित्य और गेयता बढ़ती है।
उदाहरण: “स्मृति-कुठले में संचित उपजाए अन्न की तरह”—यहाँ 'स', 'क' और 'उ' ध्वनियों का पुनरावृत्ति कविता को लयबद्ध बनाती है।
2. रूपक (Metaphor)
रूपक अलंकार इस कविता की आत्मा है, जहाँ प्रेम और ईश्वरानंद को विभिन्न प्रतीकों से दर्शाया गया है।
उदाहरण: “तुम्हारे प्रेम का धान्य हूँ”—यहाँ प्रेम को धान्य (अन्न) के रूप में चित्रित किया गया है, जो जीवन को पोषण देने वाला तत्व है।
3. पुनरुक्ति प्रकाश (Repetition)
कुछ शब्दों और भावों को दोहराया गया है, जिससे कविता का प्रभाव बढ़ता है और गहराई का अनुभव होता है।
उदाहरण: “तुम जीना चाहते हो मुझ में / प्रेम का सौंदर्य / और मैं पाना चाहती हूँ / सौंदर्य-सुख!”—यहाँ ‘सौंदर्य’ शब्द का दोहराव प्रेम की जटिलता और उसकी गहन अनुभूति को उभारता है।
4. विरोधाभास (Paradox)
कविता में प्रेम, ईश्वर, और सांसारिक सौंदर्य के बीच एक गहरे विरोधाभास का समावेश है।
उदाहरण: “जीवन का विलक्षण आनन्द— प्रेम / धर्म के लिए ईश्वरानंद है जो।”—यहाँ प्रेम और ईश्वरानंद को धर्म की दृष्टि से जोड़कर एक उच्चतर अनुभूति दर्शाई गई है।
5. लयात्मकता (Rhythm)
कविता का प्रवाह सरल किंतु भावनात्मक रूप से प्रभावी है। संक्षिप्त पंक्तियाँ और शब्दों का चयन इसे एक सहज लय प्रदान करते हैं।
6. प्रतीकात्मकता (Symbolism)
हर शब्द और रूपक गहरे प्रतीकात्मक अर्थ से जुड़ा हुआ है।
उदाहरण:
“अन्न”—प्रेम और पोषण का प्रतीक।
“अंत:सलिला”—आत्मा की गहराई का प्रतीक।
“रूपवान मछली”—सौंदर्य और स्वतंत्रता का प्रतीक।
7. श्लेष (Double Meaning/Pun)
कुछ शब्दों में श्लेष का भाव है, जहाँ वे कई स्तरों पर अर्थ देते हैं।
उदाहरण: ”ईश्वरानंद”—यह शब्द ईश्वर से मिलने वाले आनंद को तो दर्शाता ही है, साथ ही प्रेम और धर्म के बीच समन्वय का भी प्रतीक है।
निष्कर्ष
इस कविता में साहित्यिक उपकरणों का प्रयोग न केवल इसे सौंदर्य प्रदान करता है, बल्कि इसकी भावनात्मक गहनता को भी बढ़ाता है। कविता में भाषा की कोमलता, प्रतीकों की गहराई और लय का प्रवाह इसे एक विशिष्ट साहित्यिक कृति बनाते हैं।
~ विजय नगरकर
अहिल्यानगर महाराष्ट्र