शुक्रगुज़ार

01-01-2025

शुक्रगुज़ार

निर्मल कुमार दे (अंक: 268, जनवरी प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

“सर इस पुरानी किताब को आप क्यों बँधवाना चाहते हैं?” दुकानदार शौकत अली ने कहा। 

दुकानदार से प्रोफ़ेसर राय की दोस्ती-सी हो गई थी। दुकानदार प्रोफ़ेसर के व्यवहार से शुरू से अभिभूत था। 

दुकानदार की जिज्ञासा देख प्रोफ़ेसर ने कहा, “शौकत भाई, यह किताब मुझे याद दिलाती है कि जब मैं बहुत ग़रीब था और एक ग्रामर की किताब मेरे पास नहीं थी तो मुझसे एक साल सीनियर कृष्णा मड़ैया ने यह किताब देकर मेरी सहायता की थी।”

दुकानदार प्रोफ़ेसर राय के ज़मीर को देख चकित रह गया। 

“आप जैसे शुक्रगुज़ार व्यक्ति कभी ज़िन्दगी में असफल नहीं होते,” दुकानदार शौकत अली ने कहा। 

दोनों की आँखों में दिव्य ज्योति झलकने लगी। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
कविता - क्षणिका
लघुकथा
कविता-सेदोका
कविता-मुक्तक
कविता - हाइकु
अनूदित कविता
ललित निबन्ध
ऐतिहासिक
हास्य-व्यंग्य कविता
किशोर साहित्य लघुकथा
कहानी
सांस्कृतिक आलेख
रचना समीक्षा
ललित कला
साहित्यिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में