स्वामी विवेकानंद: महान व्यक्तित्व
निर्मल कुमार देआधुनिक भारत के महान व्यक्तित्व स्वामी विवेकानंद ने मात्र 39 साल की ज़िन्दगी में देश और विश्व के इतिहास में जो कृतिमान स्थापित कर गए हैं वह अभूतपूर्व ही नहीं आने वाले सदियों तक असंभव-सा लगता है।
स्वामी विवेकानंद और रवीन्द्रनाथ ठाकुर और गाँधी जी लगभग समकालीन थे। उन्नीसवीं सदी के साठवें दशक में रवींद्रनाथ, विवेकानंद और गाँधीजी का जन्म हुआ। ये तीनों भारत माता के यशस्वी संतानें हैं।
स्वामी विवेकानंद मात्र 25 साल की उम्र में संन्यासी बने। सन्यास धर्म ग्रहण करने पर ये स्वामी विवेकानंद के नाम से अपना सम्पूर्ण जीवन वेदांत दर्शन और भारतीय सनातन धर्म के प्रचार प्रसार में समर्पित कर दिया।
कोलकाता के एक कुलीन परिवार में बालक नरेंद्रनाथ का जन्म 12 जनवरी 1863 में हुआ था। पिता विश्वनाथ दत्त प्रगतिशील विचारधारा के शिक्षित व्यक्ति थे और माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थी। बालक नरेंद्रनाथ के जीवन में मातापिता के संस्कार का सामंजस्य था। घर पर नरेंद्रनाथ को बिले उर्फ़ बिरेश्वर भी कहा जाता था। यही बालक नरेंद्रनाथ ने आगे चलकर विश्व विख्यात स्वामी विवेकानंद बनकर भारत का मान बढ़ाया।
स्कॉटिश चर्च कॉलेज से इन्होंने दर्शन शास्त्र में ग्रेजुएशन किया। कॉलेज के दिनों ही ये विद्वानों की खोज में रहते जो उनके प्रश्नों के सटीक उत्तर दे सकें। कॉलेज के प्राचार्य जो अँग्रेज़ थे इन्हें दक्षिणेश्वर के स्वामी रामकृष्ण परमहंस से मिलने की राय दी।
युवा नरेंद्रनाथ ने परमहंस जी को अपना गुरु बनाया और उनके आदर्श को आत्मसात किया।
रामकृष्ण परमहंस ने अपने विचारों और सिद्धांतों से विवेकानंद को आगे का रास्ता दिखाया। परमहंस के निर्वाण के बाद कोलकाता के निकट बरानगर में अन्य गुरु भाइयों के साथ मिलकर रामकृष्ण धारा के प्रचार-प्रसार में लग गए।
संपूर्ण देश का भ्रमण नंगे पैरों किया। भारत को समझने और उसे जगाने के लिए वे कई बार भूखा-प्यासा रहकर भी अपने व्रत में लगे रहे।
इन्होंने देखा कि भारत के गरिमामय अतीत से अनजान भारतीय आर्थिक, सामाजिक और मानसिक दैन्य के शिकार हैं। भौतिकवाद से जर्जरित समाज को सही दिशा दिखाने की ज़रूरत है।
ग़रीबी, अशिक्षा, कुरीतियाँ, जातपात, स्त्रियों और कमज़ोर वर्गों की दुरवस्था जैसी समस्या चरम सीमा पर हैं।
1893 अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। अपने ओजस्वी और शानदार भाषण से विवेकानंद ने विश्व में भारत का परचम लहराया। हमें ध्यान देने की ज़रूरत है कि भारत तब स्वाधीन नहीं था। मात्र तीस साल की उम्र में अपनी विद्वता और वक्तृता के लिए स्वामी विवेकानंद अमेरिका यूरोप सहित विश्व के अन्य देशों में मशहूर हो गए।
सभी देशों में इनका डंका बजने लगा और साधारण से लेकर बड़े-बड़े विद्वानों विदेशी शिष्यों और शिष्याओं की संख्या बढ़ने लगी।
तीन साल बाद भारत आकर रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की जो आज भी मानवजाति के कल्याण में कार्य कर रहे हैं।
स्वामी विवेकानन्द की रुचि संगीत और कविता में भी थी। इन्होंने कविता और किताबें भी लिखी है। इनके विचार, भाषण, और लेखन पूरे विश्व में आदर के साथ पढ़े जाते हैं।
4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद ने अंतिम साँस ली। उस समय उनकी उम्र मात्र 39 साल और कुछ महीने की थी।
स्वामी विवेकानंद राष्ट्रवादी देशभक्त संन्यासी और प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में देखे जाते हैं।
गाँधी, सुभाष, नेहरू, तिलक अम्बेडकर सभी ने इनकी प्रशंसा में लिखा है। भगिनी निवेदिता, रोम्या रोलां एवम् अनेक विद्वान इनके भक्त रहे हैं।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने लिखा है, “अगर भारत को जानना चाहते हैं, तो स्वामी विवकानन्द को पढ़ो।”
इनकी जन्मतिथि को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाई जाती है।
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