नई दिशा
निर्मल कुमार दे"महाजन, यह छाता रख लो और मुझे सौ रुपए दे दो," एक आदिवासी अधेड़ ने गल्ले के व्यापारी अजय चौधरी से विनती की और लगभग नया एक छाता सामने रखी चौकी पर रख दिया।
बग़ल के गाँव के रामू की विवशता देख अजय चौधरी ने पूछा, "क्या हो गया रामू तुम छाता बंधक रखना चाहते हो, इस गर्मी में तुम किसान मज़दूर का छाते के बग़ैर कैसे काम चलेगा?"
"दवाई ख़रीदनी है महाजन, मेरे पास पैसे नहीं है, तीन महीने से कोई काम नहीं मिला है। पत्नी चार दिन से बीमार है," रामू ने जवाब दिया।
परदे की आड़ से अजय की पत्नी दोनों की बातें सुन रही थी। खाँसकर इशारे से पत्नी ने अजय चौधरी को भीतर बुलाया और कहा, "पिछले महीने आपने एक धर्मार्थ न्यास को दस हज़ार रुपए दान किये। आज एक दरिद्रनारायण ख़ुद चलकर आपके दरवाज़े पर आया है। आप सोचें आपको क्या करना है!"
पत्नी की बातों से अजय चौधरी को नई दिशा मिली।
"रामू, ये लो दो सौ रुपए और छाता भी अपने साथ ले जाओ। पत्नी का ठीक से इलाज करा लेना। जब हाथ में पैसे आ जायेंगे, वापस कर देना," अजय चौधरी ने रुपए और छाता देते हुए कहा।
रामू ने रुपए और छाता लेकर कहा, "महाजन अब तो जेठ बीतने चला। खेती बारी में मज़दूरी कर आपका पैसा ज़रूर लौटा दूँगा।" उनकी आँखों में कृतज्ञता झलक रही थी।
2 टिप्पणियाँ
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बहुत बढ़िया
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हार्दिक धन्यवाद और आभार।
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