बहू की भूमिका
निर्मल कुमार देलॉक डाउन की वजह से कहीं आने जाने की मनाही के बाद बासठ वर्षीय अमिताभ बाबू दिन प्रतिदिन कमज़ोर और उदास हो चले थे।
अनूप ने एक दिन अपनी पत्नी से इस बात की चर्चा की। शादी हुए अभी दो ही महीने हुए थे।
अनूप की पत्नी कंचन ने सारी बातें सुन अपने पति से कहा,"पिताजी की हॉबी क्या रही है?"
"पिताजी टीवी देखने से ज़्यादा किताबें पढ़ना पसंद करते हैं। रिटायरमेंट के पहले दो तीन अख़बार भी पढ़ते थे।"
"गीत संगीत में भी रुचि है क्या?"
"ख़ुद तो गाते नहीं है लेकिन पुराने ज़माने के फ़िल्मी गीत सुनना पसंद करते हैं," अनूप ने कहा।
"कुछ लिखने का भी शौक़ रहा है पिताजी को?" कंचन ने जानना चाहा।
"पहले लिखा करते थे लेकिन बहुत वर्षों से लिखते हुए नहीं देखा," अनूप ने जवाब दिया।
"आप कल बाबूजी को एक अच्छी नोट बुक और क़लम देकर लिखने के लिए प्रोत्साहित करें। आप कहेंगे तो उसे आपत्ति नहीं होगी। साथ ही एक डिब्बा च्यवनप्राश ख़रीद लाइए और हाँ सन्ज़ी के साथ नींबू ज़रूर ख़रीद कर लाएँ। फिर बाबूजी की देखभाल मैं करती हूँ।"
कंचन और अनूप ने पूरा ध्यान लगा दिया अपने पिताजी के देखभाल में। लॉक डाउन की वजह से माँ और पिताजी अलग-अलग जगह पर फँस गए थे। माँ छोटे बेटे के साथ गाँव में थी।
अगले दिन कंचन ने सुबह गुनगुने पानी में नींबू पानी देने के बाद लाल चाय दी अपने ससुर को। फिर दो अख़बार लेकर आई।
"बाबूजी,आप तो बहुत कुछ लिख सकते हैं। आप पहले लिखते थे।"
"पहले लिखा करता था," अमिताभ बाबू ने कहा।
"तो अब क्यों नहीं, देखिए आपके लिए नोट बुक और क़लम ला दिया है। आप कम से कम अपनी पुरानी यादें लिख ही सकते हैं।"
बहू की बातों से अमिताभ बाबू ख़ुश नज़र आए।
"ठीक कहती हो बेटा, वाह बहुत सुंदर नोट बुक और क़लम है।"
इतने में अनूप भी आ गया।
"पिताजी,आपको लिखने का शौक़ रहा है। आप लिखिए। मैं मोबाइल में कुछ ऐप जोड़ देता हूँ और साहित्यिक ग्रुप से आपको जोड़ देता हूँ। ख़ूब मन लगेगा। आपका स्वस्थ रहना बहुत ज़रूरी है," अनूप ने कहा।
"जब भी मन करे आप अपने पसंद के गीतों को भी सुन सकते हैं। एक नया मोबाइल आज ही आ जाएगा। आपके लिए ऑनलाइन ऑर्डर कर दिया है।"
"क्यों ऑर्डर दिया, मेरे पास एक है न?" अमिताभ बाबू ने कहा।
"पिताजी आपके लिए एक नया मोबाइल चाहिए था जिसमें कुछ नए ऐप हों। आपके लिए च्यवनप्राश ला दिया है। लॉक डाउन के कारण अभी आप बाहर नहीं जा पा रहे हैं। सुबह शाम घर पर ही योगासन कीजिए। कंचन आपका पूरा ध्यान रखेगी," अनूप ने कहा।
"हाँ बाबूजी मैं आपकी बहू ही नहीं बेटी भी हूँ," कंचन ने कहा।
कंचन की बात सुन अमिताभ बाबू बहुत ख़ुश हुए। आशीर्वाद देते हुए कहा,"सदा सुखी रहो बेटा,भगवान की कृपा सदा बनी रहे।"
अनूप को विश्वास हो गया कि पिताजी के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार ज़रूर होगा।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- लघुकथा
-
- अपने हिस्से का आसमान
- असामाजिक
- आँखें
- आत्मा की तृप्ति
- आस्तीन का साँप
- उदासी
- कचरे में मिली लक्ष्मी
- कबीरा खड़ा बाज़ार में
- कमी
- कश्मकश
- गुलाब की ख़ुश्बू
- घोड़े की सवारी
- चिराग़ तले अँधेरा
- चिरैया बिना आँगन सूना
- चेहरे का रंग
- जहाँ चाह वहाँ राह
- जीत
- जुगाड़
- जोश
- ठेकुआ
- डस्टबिन
- डाकिया
- तक़दीर
- दर्द
- दाँव
- दीये का मोल
- दो टूक बात
- धिक्कार
- धूप और बारिश
- धृतराष्ट्र अभी भी ज़िन्दा है
- नई दिशा
- नहीं
- नास्तिक
- नीम तले
- नीम हकीम ख़तरा-ए-जान
- पहचान
- पहली पगार
- पुरानी किताबें
- पुश्तैनी पेशा
- प्याजी
- प्यासा पनघट
- बदलाव
- बरकत
- बहू
- बहू की भूमिका
- बुड़बक
- ब्लड प्रेशर
- भीख
- भेदभाव
- महँगाई मार गई
- माँ की भूमिका
- मैं ज़िन्दा नहीं हूँ
- रँगा सियार
- लड़ाई
- लेटर बॉक्स
- विकल्प
- संवेदना
- सतरंगी छटा
- सपने
- सफलता का राज़
- समझदारी
- सम्बन्ध
- सम्मान
- सर्दी
- सर्वनाश
- सुकून
- सौ रुपए की सब्ज़ी
- हैप्पी दिवाली
- ख़ुद्दारी
- फ़र्क़
- कविता
-
- अन्याय का प्रतिरोध
- अरुण यह मधुमय देश हमारा
- आत्मग्लानि
- आसमानी क़िला
- आज़ादी
- कायर
- किराए का टट्टू
- चौराहा
- जनतंत्र के प्रहरी
- जिजीविषा
- जीना इसी का नाम है
- तुम नहीं आए
- तुम्हारा ख़त
- तेरा प्रतिबिंब
- पहली मुहब्बत
- मधुमास
- माँ
- वर्ण पिरामिड
- विडम्बना
- शुभ दीपावली
- सरस सावन
- साथ-साथ
- सावन की घटा
- सफ़र मेरा सुहाना हो गया
- क़लम और स्याही
- ख़ुश्बू पसीने की
- कविता - क्षणिका
- अनूदित कविता
- कविता - हाइकु
- हास्य-व्यंग्य कविता
- कविता-मुक्तक
- किशोर साहित्य लघुकथा
- कहानी
- सांस्कृतिक आलेख
- ऐतिहासिक
- रचना समीक्षा
- ललित कला
- कविता-सेदोका
- साहित्यिक आलेख
- विडियो
-
- ऑडियो
-