जीत

निर्मल कुमार दे (अंक: 233, जुलाई द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

अपने रिश्तेदार की शादी में सास अपने दोनों बेटों और बहुओं के साथ गाँव आई थी। दोनों बेटे सरकारी जॉब में थे, स्वाभाविक है दोनों बहुओं की साज-सज्जा में कोई कमी नहीं थी। 

रिसेप्शन के बाद सास अपनी कुछ रिश्तेदारों के साथ बातचीत में व्यस्त थी। 

अचानक एक रिश्तेदार बोली, “दीदी आपकी दोनों बहुएँ बहुत सुंदर हैं। तीस साल से ज़्यादा उम्र होगी दोनों की। लेकिन बीस-पच्चीस साल की लगती हैं दोनों। साज-सज्जा और शृंगार से दोनों के सौंदर्य में चार चाँद लग जाते हैं।”

बहुओं की प्रशंसा सुन सास के चेहरे की रंगत गुलाबी हो गई। 

“लेकिन आपकी छोटी बहू की सबसे बड़ी ख़ूबी उसकी मुस्कान और सादगी है जो आपकी बड़ी में नहीं है,” रिश्तेदार ने बेबाकी से कहा। 

“आज तुमने मेरे दिल की बात कही। आज मेरी छोटी जीत गई,” सास ने कहा। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

लघुकथा
कविता
कविता - क्षणिका
अनूदित कविता
कविता - हाइकु
हास्य-व्यंग्य कविता
कविता-मुक्तक
किशोर साहित्य लघुकथा
कहानी
सांस्कृतिक आलेख
ऐतिहासिक
रचना समीक्षा
ललित कला
कविता-सेदोका
साहित्यिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में