इतिहासपुरुष: पंडित जवाहर लाल नेहरू
निर्मल कुमार देइतिहास पुरुषों में शुमार जवाहरलाल नेहरू की चर्चा आज भी न सिर्फ़ भारत बल्कि विदेशों में भी होती है। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की उपेक्षा करना इतना आसान भी तो नहीं।
एक धनी और संभ्रात परिवार में जन्म लेने वाले पंडित जवाहर लाल नेहरू ने गाँधी जी की अगुआई में भारत की आज़ादी की लड़ाई में भाग लिया, नौ बार जेल गए और आज़ाद भारत के पहले प्रधान मंत्री के रूप में लगातार आजीवन देश को अपनी ऐतिहासिक सेवा दी।
प्रतिष्ठित स्कूल कॉलेजों में शिक्षा प्राप्त करने के बाद इन्होंने देश सेवा का व्रत लिया और गाँधीजी के आदर्श को अपना राजनीतिक मंत्र बनाया।
अपने समय के विख्यात वकील और स्वतंत्रता सेनानी मोतीलाल नेहरू के पुत्र पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को इलाहाबाद में हुआ था।
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से इन्होंने अपनी पढ़ाई की और 1912 में बैरिस्टर की उपाधि लेकर स्वदेश लौटे।
सत्ताइस साल की उम्र में इनकी शादी सत्रह साल की कमला नेहरू से हुई थी। शादी के एक साल बाद वे पिता बने। इनकी एकमात्र संतान इंदिरा प्रियदर्शिनी आगे चलकर अपने पिता के समान एक विशाल व्यक्तित्व बनी।
गाँधीजी के आह्वान पर जवाहर लाल नेहरू देश की आज़ादी के लिए अपने को समर्पित कर दिया।
चालीस साल की उम्र में नेहरू जी सन 1929 को कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चुने गए। इसी अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की मांग उठाई गई थी।
देश की आज़ादी के लिए आंदोलन के कारण अँग्रेज़ी सरकार ने नौ बार जेल की सज़ा दी। जेल में रहकर ही इन्होंने अपनी आत्मकथा और अन्य किताबें लिखी।
गाँधीजी के आदर्शों पर चलकर इन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी।
आज़ादी के पहले ही अंतरिम सरकार का गठन नेहरू जी के ही नेतृत्व में हुआ था।
नेहरू जी स्वतंत्र भारत के तीन लोकसभा चुनावों में अपनी पार्टी को जीत दिलाने में सक्षम रहे और लगभग सोलह साल तक प्रधान मंत्री का दायित्व निभाया।
जवाहरलाल नेहरू एक राजनीतिज्ञ के साथ गंभीर चिंतक, कुशल वक्ता और प्रसिद्ध लेखक भी थे।
अपने समकालीन विश्व के नेताओं और लेखकों की नज़रों में इनकी छवि उज्ज्वल रही है।
स्वतंत्र भारत के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और औद्योगिक विकास में इनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। गुटनिरपेक्ष नीति इनकी सफल विदेश नीति रही है।
समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और वैज्ञानिक सोच के पक्षधर नेहरू ने भारतीय लोकतंत्र को मज़बूत करने में अहम भूमिका निभाई है।
जवाहरलाल नेहरू ने लेखन में भी ख्याति अर्जन की है। ’भारत की खोज’, ’विश्व इतिहास की एक झलक’, ’मेरी आत्मकथा’ और ’पिता के पत्र पुत्री के नाम’ उनकी प्रसिद्ध पुस्तकें हैं। ये किताबें जेल में ही लिखी गईं हैं। इन किताबों के अलावा बहुत से व्याख्यान दिए, लेख और पत्र लिखे। महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने नेहरू की लिखी किताब ’विश्व इतिहास’ की एक झलक की भूरि-भूरि प्रशंसा की है।
नेहरू जी को बच्चों से बहुत प्यार था। उनकी जन्मतिथि को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
कश्मीर मसले पर तथा चीन से मिली हार के लिए भले ही उनकी आलोचना की जाती रही हो, लेकिन उनकी लोकप्रियता सदा बरकरार रही।
वे अपने विरोधियों का भी सम्मान करते थे और उनके विचारों को ध्यान से सुनते और मनन करते थे।
अटल बिहारी बाजपेई भी उनके व्यवहार और व्यक्तित्व के कायल थे।
राष्ट्र के लिए उनके महत्वपूर्ण योगदान को स्वीकृति देते हुए उन्हें 1955 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारतरत्न से सम्मानित किया गया है।
27 मई 1964 को हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया।
नोबल पुरस्कार के लिए नेहरू जी नौ बार नामित किए गए थे।
दिल्ली में नेहरू जी की समाधि है जिसे शांतिवन कहा जाता है।
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