परिभाषाएँ बदल रही हैं

01-06-2025

परिभाषाएँ बदल रही हैं

निर्मल कुमार दे (अंक: 278, जून प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

अर्थहीन हो गईं किताबें 
जो अतीत में लिखी गईं 
बदले हुए संदर्भ में
लिखो अब कुछ नयी नयी। 
 
बदल गईं परिभाषायें
स्वाधीनता स्वराज की
इज़्ज़त ले ली गई
नैतिकता और लाज की। 
 
छला गया लोगों को
स्वराज के नाम पर 
लूटी जा रही जनता 
समाजवाद के नाम पर। 
 
रिश्वत का नाम हुआ चंदा
सेवा काम बड़ा ही गंदा 
हंस हुआ उल्लू का बंदा 
राजनीति है सुंदर धंधा। 
 
थोथा काम नगद इनाम 
आयाराम गयाराम। 
 
सिद्धांतों का बलात्कार
कहलाता अंतरात्मा की पुकार
लोकतंत्र का घटिया रूप
बिक गई चुनी गई सरकार। 

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