कश्मकश

01-01-2022

कश्मकश

निर्मल कुमार दे (अंक: 196, जनवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

“बहू, ज़िन्दगी के बीस साल गुज़ार दिए सफ़ेद साड़ी और सफ़ेद ब्लाउज में, जबसे तुम्हारे बाबूजी नहीं रहे। आज तुम मेरे लिए लाल शॉल लाई हो!”

“माँ जी, आज आपका जन्मदिन है, साठ के आसपास आपकी उम्र है। आप तो खुले विचार की हैं फिर परिधान में इतनी बंदिश क्यों?”

“बेटा! अब तो कुछ वर्षों की मेहमान हूँ। बक्से में दो-दो सोने की चेन हैं। कभी हाथ नहीं लगाया।”

“आपकी कश्मकश को मैं बख़ूबी समझती हूँ। आप दादी बन गई हैं। पोते की ख़ुशी के लिए शॉल भी पहनेंगी और चेन भी।”

“बेटा इतनी ज़िद . . .!”

“माँजी! आप ही तो कहती हैं हमें अपनी छोटी-छोटी इच्छाओं का भी सम्मान करना चाहिए।”

बहू की ज़िद और सम्मान भाव को देख सास ने लाल शॉल ओढ़ ली। 

“आज शाम आप सोने की चेन भी पहन लेंगी माँजी। सारी कश्मकश ख़त्म,” बहू ने कहा। 

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