सुकून

निर्मल कुमार दे (अंक: 196, जनवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

व्हाट्सएप पर बेटे का मैसेज था, “पापा इस महीने रुपये नहीं भेज पा रहा हूँ। किसी तरह मैनेज कर लेंगे।”

“तुम चिंता मत करो दीपक। मन लगाकर काम करो,” पिता ने जवाब टाइप किया। 

“पापा मैं बहुत जल्द आ रहा हूँ . . . अमेरिका में रहकर मैं बिल्कुल अकेलापन महसूस कर रहा हूँ। आपके त्याग और परिश्रम से मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की और नौकरी भी लग गई अच्छी कंपनी में। लेकिन . . . अब मुझे आपके साथ रहना चाहिए।”

“क्या नौकरी छोड़ दी तुमने?” पिता ने चिंता जताई। 

“जी पापा! मैंने यहाँ की नौकरी छोड़ दी है लेकिन अपने ही देश में एक बड़ी कंपनी में ऑनलाइन ज्वाइन कर ली है।”

“ . . . ”

“अब हमलोग साथ ही रहेंगे।”

पिता की आँखों में सुकून चमक उठा। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

लघुकथा
कविता
कविता - क्षणिका
अनूदित कविता
कविता - हाइकु
हास्य-व्यंग्य कविता
कविता-मुक्तक
किशोर साहित्य लघुकथा
कहानी
सांस्कृतिक आलेख
ऐतिहासिक
रचना समीक्षा
ललित कला
कविता-सेदोका
साहित्यिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में